MyChalisa.Com https://mychalisa.com/ Fri, 12 Jan 2024 09:49:14 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.5 https://mychalisa.com/wp-content/uploads/2023/03/cropped-om-e1677695067201-32x32.png MyChalisa.Com https://mychalisa.com/ 32 32 Everything About नोयडा इस्कॉन मंदिर | Noida ISKCON Temple https://mychalisa.com/noida-iskcon-temple/ https://mychalisa.com/noida-iskcon-temple/#respond Fri, 12 Jan 2024 09:49:13 +0000 https://mychalisa.com/?p=1554 भगवान श्री कृष्ण की पूजा आराधना उपासना के लिए आप दुनिया भर में भारत की भूमि पर कई विशेष प्रकार ...

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भगवान श्री कृष्ण की पूजा आराधना उपासना के लिए आप दुनिया भर में भारत की भूमि पर कई विशेष प्रकार के मंदिर देख सकते हैं। आपको बहुत से ऐसे मंदिर संस्था मिल जाएंगे जो भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और भागवत गीता के सुंदर उपदेश के लिए जाने जाते हैं। भगवत गीता भगवान श्री कृष्ण से ही प्रेषित है। और यह हिंदुओं का सबसे बड़ा ग्रंथ भी है भगवत गीता के संदेश को दुनिया भर में पहुँचाने का काम किया जा रहा है। यह संदेश जिस संस्था के द्वारा पहुंचाया जा रहा है उसका नाम इस्कॉन संस्था है। इस्कॉन का पूरा नाम इंटरनेशनल सोसाइटी कृष्ण कॉन्शियस है। इस्कॉन पूरे देश दुनिया में आपको 1000 से ज्यादा केंद्र मिल जाएंगे। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसमें 400 इस्कॉन मंदिर आप देख सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि इस्कॉन की शुरुआत कैसे हुई, इसकी स्थापना सबसे पहले कहां हुई थी। बहुत से ऐसे सवाल है जिनके बारे में आपको जानना बहुत जरूरी है। आईए जानते हैं नोयडा इस्कॉन मंदिर से जुड़े हुए पूरे इतिहास के बारे में और नोएडा इस्कॉन मंदिर की पूरी जानकारी..

श्री कृष्णा और राधा के प्रेम का प्रतीक ISKON

नोयडा इस्कॉन मंदिर में हिंदुओं का बहुत पवित्र आकर्षित वैष्णो मंदिर है। यह मंदिर भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी के प्रेम का प्रतीक है और उन्हीं को ही यह मंदिर समर्पित है। नोएडा इस्कॉन मंदिर अगर आप घूमना चाहते हैं तो यह अग्रसेन मार्ग सेक्टर 33 उत्तर प्रदेश में आपको मिल जाएगा। यहां आकर आप इस मंदिर परिसर को देख सकते हैं मंदिर की पूरी देखरेख का काम इस्कॉन मंदिर की संस्था के द्वारा होता है। आप अगर इस्कॉन मंदिर में घूमने आते हैं तो यहां भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी की अद्भुत अलौकिक सुंदर मूर्तियां आपको देखने को मिलेंगी।

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 यहां इस मंदिर की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण से की गई है। गीता का सुंदर उपदेश भी आप देख सकते हैं। उसकी एक सुंदर प्रति मूर्ति बनाई गई है जो कि इस मंदिर को बहुत ही खास और विशेष स्थान दिलाती है। आईए जानते हैं नोएडा इस्कॉन मंदिर की पूरे इतिहास के बारे में इस छोटे से ब्लॉग में पूरी जानकारी..

नोएडा इस्कॉन मंदिर बनावट

नोयडा इस्कॉन मंदिर एक छोटे से भूखंड पर बना हुआ विशेष प्रकार का मंदिर है। इस मंदिर में विशिष्ट तत्वों का समायोजन किया गया है उसके ऊपर सिद्ध मंदिर बनाया गया है। यह इस्कॉन मंदिर साथ मंजिल का बनाया गया है मंदिर के शिकार की ऊंचाई लगभग 160 फुट की है मंदिर में एक बड़ा मंदिर का कक्ष बनाया गया है इसके अलावा यहां एक सभागार, एक गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट, शादी, जन्मदिन का प्रोग्राम, करने के लिए एक बड़ा हॉल, एजुकेशन के लिए हाल, एक आवश्यक विंग, रसोई घर, बेडरूम इत्यादि सुख सुविधा दी गई है। मंदिर परिसर के बाहर आप दुकान कार्यालय हाल सभी का प्रयोग कर सकते हैं।

इस्कॉन मंदिर की पूजा का विधान

इस्कॉन मंदिर में पूजा-पाठ बड़े विधि विधान के साथ किया जाता है। यहां पर आध्यात्मिक नियमों के अनुसार पूरे पूजा पाठ के प्रोग्राम को देखने के लिए प्रशिक्षित पुजारी रखे गए हैं। जो अपने आध्यात्मिक नियमों के अनुसार दिन प्रतिदिन उनकी पूजा आराधना आरती का काम करते हैं। नोएडा इस्कॉन मंदिर की खास बात यह भी है कि यहां प्रतिदिन 6 आरतियों से भगवान की आराधना की जाती है। उन सभी आरतीयो में मंगल आरती, धूप आरती, राजभोग आरती, संध्या आरती और अंत में शयन आरती की जाती है। इस्कॉन मंदिर में मुख्य मनाने जाने वाले पर्व में से जन्माष्टमी, रामनवमी, गौरी पूर्णिमा, राधा अष्टमी और गोवर्धन जैसे प्रमुख त्योहार इस मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

स्थापना

इस्कॉन मंदिर की स्थापना पूरे भारतवर्ष में जगह-जगह हो रही है। सबसे पहले इस्कॉन मंदिर के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद वृंदावन चले गए। वहां वह 16 साल रहने के बाद में अमेरिका चले गए। सन 1966 में उन्होंने मुख्य रूप से पहली बार इस्कॉन ट्रस्ट की स्थापना की। इस्कॉन की स्थापना अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में की गई थी।

मुख्य रूप से देखा जाए तो यह इस्कॉन मंदिर अमेरिका के लोगों से जुड़ा हुआ है। अमेरिका में एक ऐसा समाज जिसको बहिष्कृत कर दिया गया है। उस समाज को हैप्पी कहा जाता है। इस्कॉन मंदिर के माध्यम से लोगों को भागवत गीता के उपदेश अर्थ को समझाया जाता है।  आज इस्कॉन मंदिर देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मौजूद है लाखों की संख्या में इस्कॉन संस्था के अनुयाई आप देख सकते हैं।

नोएडा इस्कॉन मंदिर की खास रोचक बातें

नोएडा में स्थित इस्कॉन मंदिर भक्ति शांति और स्थापत्य भव्यता का एक बहुत ही अद्भुत नमूना माना जाता है। मंदिर परिसर में खास तरह की नाका से राज्य से गुंबद सुंदर बाग बगीचों का निर्माण किया गया है। जो इसकी शोभा को बढ़ाते हैं। यहां जाने के बाद एकदम शांत वातावरण का अनुभव होता है। जो हर व्यक्ति को आंतरिक शांति और सांत्वना दिलाने में बहुत अच्छा होता है। नोएडा के इस्कॉन मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र महाकाल राज्यसी हाल है। यह हॉल राजा महाराजाओं के दरबार हॉल के रूप में जाना जाता है। इस हाल के अंदर भगवान श्री कृष्ण की सभी लीलाओं को दर्शाया गया है। जिन लीलाओं का वर्णन किया गया है। वह सभी सुंदर भित्ति चित्र और सुंदर चित्रों के द्वारा बनाई गई है। हाल में यह सभी चित्रकार हर व्यक्ति को मंत्र मुक्त करने के लिए बनाई गई है। यहां जटिल नक्काशेदार लकड़ी की छत और संगमरमर का पत्थर, बेहद आकर्षक अलंकृत झूमर इस मंदिर की सुंदरता और भव्यता को जोड़े रखना का काम करता है।

समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व का परिचय इस्कॉन

नोएडा में स्थित इस्कॉन मंदिर को आप इसको एक मंदिर नहीं कह सकते बल्कि यह भारत के सभी मंदिरों में से एक समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाने का सुंदर प्रतीक माना गया है। इस मंदिर को मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी के रूप को समर्पित किया गया है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथो में भगवान श्री कृष्ण के प्रेम वात्सल्य, करुणा भक्ति के प्रतीक के रूप में यहां सभी मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई है। मुख्य रूप से भागवत गीता की शिक्षाओं के आधार पर यहां हर नियम का पालन किया जाता है। भगवत गीता एक धार्मिक हिंदुओं का प्रतिष्ठित ग्रंथ माना गया है।

निष्कर्ष:

नोएडा इस्कॉन मंदिर बहुत ही भव्य और सुंदर बनाया गया है। अगर आप भगवान श्री कृष्ण के मंदिर घूमना चाहते है तो इससे अच्छा विकल्प कोई नही हो सकता है। आप इस मंदिर में न केवल घूम सकते है बल्कि यहाँ पर रहने, खाने का भी अच्छा ख़ासा इंतजाम किया गया है।और पढ़ने के लिए MyChalisa.com को फॉलो करें।

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सूर्य मंदिर ग्वालियर | इतिहास, दर्शन और सम्पूर्ण विवरण https://mychalisa.com/%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%b0/ https://mychalisa.com/%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%b0/#respond Fri, 15 Dec 2023 09:38:23 +0000 https://mychalisa.com/?p=1548 सूर्य मंदिर का नाम सुनते ही दिमाग में एक नाम आता है उड़ीसा का कोणार्क मंदिर, लेकिन आपको बता दे ...

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सूर्य मंदिर का नाम सुनते ही दिमाग में एक नाम आता है उड़ीसा का कोणार्क मंदिर, लेकिन आपको बता दे कि उड़ीसा के अलावा भी ग्वालियर में अति प्राचीन सूर्य मंदिर है। इसका निर्माण वसंत कुमार बिरला के द्वारा 20वीं सदी में करवाया गया था।  यह 20वीं सदी का एकमात्र सूर्य मंदिर है, जो कि ग्वालियर मध्य प्रदेश में आता है। 

बिरला परिवार की स्थापना की वजह से अन्य बिरला मंदिरों के कारण ग्वालियर के इस मंदिर का नाम बिरला मंदिर और बिरला सूर्य मंदिर भी रखा गया है। अर्थात इन नाम से भी आप इसको जान सकते हैं। अन्य सभी बिरला मंदिर पूरे देश में आप देख सकते हैं जो कि अपनी अद्भुत शैली अत्यधिक हरियाली बड़े-बड़े बगीचों की वजह से जाने जाते हैं ।आईए जानते हैं ग्वालियर सूर्य मंदिर के बारे में उसका इतिहास उससे जुड़ी हुई सभी महत्वपूर्ण जानकारियां.

ग्वालियर सूर्य मंदिर का स्वरूप

ग्वालियर में स्थित सूर्य मंदिर के स्वरूप की अगर बात की जाए तो यह मंदिर भगवान सूर्य के रथ के आकार का बना हुआ है। यहां पर एक बड़े से चबूतरे के ऊपर 24 चक्र और सात घोड़े का रथ विराजमान है, जो कि गर्भ ग्रह और मुख्य हाल पर बनाया गया है। रथ के अंदर साल के 24 पखवाड़े, दिन रात के 8-8 सप्ताह के सभी दिन इसके प्रतीक माने जाते हैं। इस प्रकार की आकृति में इस सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया है।

सूर्य मंदिर के निर्माण का इतिहास

ग्वालियर सूर्य मंदिर का निर्माण बसंत कुमार जी बिरला ने 20वीं सदी में करवाया था। इस मंदिर के शिलान्यास का प्रोग्राम सन 1984 में तथा प्राण प्रतिष्ठा 23 जनवरी को हुई थी ।इस मंदिर की चौड़ाई की बात की जाए तो यह 20500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। मंदिर की ऊंचाई क्षेत्र फिट 1 इंच की रखी गई है। पूर्ण रूप से यह मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर के तरह ही बनाया गया है। जो कि वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण लगता है। यह मंदिर आधुनिक युग का एकमात्र ऐसा अद्भुत सूर्य मंदिर है जो वस्तु सिर्फ का भी गौरव माना जाता है।

ग्वालियर का सूर्य मंदिर अगर आप देखने जाते हैं तो उसको देखते ही उड़ीसा के कोणार्क मंदिर की छवि दिमाग में याद आती है। उड़ीसा का कोणार्क मंदिर जिस तरह से उल्टे कमल की शैली पर बनाया गया है। उसी प्रकार से इस मंदिर को भी रथ की आकृति पर सूर्य के समान बनाया गया है। कोणार्क मंदिर की तरह ही सूर्य मंदिर में भी भगवान सूर्य के सप्ताह दिन के प्रतीक साथ घोड़े पर सवार किए गए हैं। इस रथ पर साल के 12 महीना के साथ-साथ कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष के प्रतीक शैया की दोनों साइड बनाए गए हैं। 

हर पहिए में आठ बड़े आठ छोटे और लगाए गए हैं जो रात और दिन के आठ पैर का प्रतीक माना जाता है। गर्भ ग्रह में भगवान सूर्य की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में खिड़कियां इस तरीके से बनाई गई है कि सूर्य की पहली किरण संध्या काल की आखिरी किरण भगवान सूर्य की प्रतिमा को रोशन करती रहे इस तरह से इस मंदिर को बनाया गया है।

सुबह से शाम होती है आरती

प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को पालन करते हुए यहां पर सूर्य भगवान की नित्य प्रतिदिन सूर्य उपासना होती आ रही है। जिसमें से भगवान की आरती भी मंदिर में सूर्योदय और सूर्यास्त पर होती है। मंदिर की आरती की अगर बात की जाए तो ढोल नगाड़ों की ताल पर पुजारी और श्रद्धालु आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करते हुए भगवान सूर्य नारायण की आरती गाते हैं। मंदिर के वास्तु की वजह से ही यहां नगाड़ा और गायन के साथ में आध्यात्मिक वातावरण महसूस होता है।

सूर्य मंदिर का गर्भ ग्रह

सूर्य मंदिर के गर्भ ग्रह में सात घोड़े के रथ के समान यहां एक संगमरमर का बड़ा चबूतरा बनाया गया है चबूतरो के सामने सात घोड़े बनाए गए हैं जिनका राशि सारथी के हाथ में है चबूतरे पर ऊंचे आसन पर भगवान सूर्य की मूर्ति विराजमान है।

 पद्मासन में भगवान सूर्य कुंडल एकवाली, हर कोंकण, नूपुर, मेखला, धोती, रघुपति धारण किए हुए हैं। भगवान सूर्य चतुर्भुज देवता के समान दिखाई दे रहे हैं। उनकी दो उठी हुई भुज में कमल पुष्प त्रिशूल और माला भी दिखाई देती है।

भगवान सूर्य की प्रतिमा पौराणिक हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश के समान दिखाई देती है। कमल पुष्प के समान सूर्य और विष्णु , त्रिशूल शिव के, माला ब्रह्मा के प्रतीक माने गए हैं।

गर्भ ग्रह के अंदर सूर्य की रोशनी निरंतर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पड़े इसके लिए शिखर के चारों तरफ सुरंग बनाई गई है जिससे कि सूर्य की रोशनी भगवान की मूर्ति पर पड़ती रहे उस मूर्ति की चमक ज्यादा दिखाई देती है।

मंदिर में वास्तु कला का इस तरीके से कारीगरी की गई है दिन के बीच में सूर्य की किरण गर्भ ग्रह में स्थित भगवान सूर्य की मूर्ति पर सीधी पड़ती है जो उसके स्वर्ण मुकुट को पूरी तरह से चमकती है सदैव प्रकाशित करती रहती हैं।

सूर्य मंदिर का मंडप व अन्य मूर्ति

सूर्य मंदिर ग्वालियर में मंदिर की पूर्व दिशा में दाई और बाई तरफ दो बड़ी आकार की छतरियां विराजमान है जिनमें घनश्याम दास जी बिरला और उनकी पत्नी महादेवी बिरला की काशी की मूर्तियां भगवान को प्रणाम करते हुए बनाई गई है जिससे मंदिर की शोभा और बढ़ रही है मंदिर में एक बड़ा हाल और तीन द्वारा बनाए गए हैं हरिद्वार पर चार-चार स्तंभ लगाए गए हैं उन सभी स्तंभों पर नवग्रह की मूर्तियां स्थापित की गई है। हर द्वार पर आपको चतुर्भुज जी गणेश जी की मूर्ति भी विराजमान दिखाई देगी। 

मंदिर में देखा जाए तो कल 373 मूर्तियां विराजमान है। मंदिर की दीवारों पर भी खास तरह की चित्रकारी की गई है। जिनमें द्वादश सूर्य के अवतार दशावतार ब्रह्मा विष्णु नारद नवदुर्गा चारों दिशाओं में नृत्य मुद्रा में बाद बजाती हुई मुद्रा में नारी की मूर्ति भी बनाई गई है। हम उम्मीद करते है My Chalisa का हमारा ये लेख आपकी सभी जिज्ञासा को पूरी करेगा. धन्यवाद!!!

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काशी विश्‍वनाथ मंदिर बनारस का इतिहास https://mychalisa.com/%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/ https://mychalisa.com/%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/#comments Fri, 01 Dec 2023 08:29:03 +0000 https://mychalisa.com/?p=1545 काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह 12 ज्योतिर्लिंगों ...

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काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है ।काशी को भगवान भोलेनाथ और काल भैरव की नगरी भी कहा जाता है या यूं कहे कि यह भगवान शिव की एक अद्भुत नगरी है जिसमें भगवान खुद विराजमान होते हैं काशी को सप्तपूरियों के अंतर्गत भी शामिल किया गया है काशी नगरी को बनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है काशी के अंदर दो नदियों का संगम क्रमशः वरुण और 80 के बीच बसे होने की वजह से इसको वाराणसी भी कहा जाता है आईए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।

शिव के त्रिशूल पर विराजमान है काशी

मान्यताओं की अगर बात की जाए तो काशी नगरी गंगा किनारे बसी होने की वजह से भगवान शिव की त्रिशूल की नोक पर पूरी काशी नगरी बसी हुई है 12 ज्योतिर्लिंग में से एक सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ यहां काशी बनारस में विराजमान है पतित पाहिनी भागीरथी गंगा तट पर धनुष कारी काशी नगरी पाप नाशिनी नगरी के रूप में विख्यात है भगवान शिव को काशी बहुत ज्यादा प्रिय है इसी वजह से इसका नाम काशीनाथ ही रखा गया है।

भगवान श्री हरि विष्णु की नगरी

शास्त्रों के अनुसार काशी को भगवान श्री हरि विष्णु की पूरी भी माना गया है या यू कहे कि पहले यह भगवान शिव की नहीं विष्णु भगवान की पूरी कहलाती थी। यहां पर भगवान श्री हरि विष्णु के आनंद अश्रु गिरे थे। जिससे एक सरोवर प्रकट हो गया। वहां पर भगवान श्री हरि विष्णु बिंदु माधव के नाम से विराजमान हो गए। महादेव को भी भगवान विष्णु की वजह से यह काशी नगरी बहुत प्रिय थी। इसकी वजह से भगवान विष्णु से शिव ने अपने आवास स्वरूप काशी नगरी को वरदान में मांग लिया। तब से लेकर काशी नगरी में भगवान शिव का स्थान बन गया। काशी नगरी हिंदुओं का सबसे बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। 

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विनाश कर दिया यहां के सभी मंदिरों का

चीनी यात्री ह्वेनसांग में बताया गया है कि उनके समय में काशी विश्वनाथ में लगभग 100 मंदिर थे लेकिन सभी मुस्लिम शासको ने यहां के सभी मंदिरों को जड़ से खत्म करके उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया। 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने वापस से काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। उसके बाद में सम्राट विक्रमादित्य ने भी इसका जीर्णोद्धार करवाया था। वापस से मोहम्मद गौरी ने सन 1194 में इस मंदिर को लूटने के बाद में खत्म कर दिया।

1585 ईस्वी में राजा टोडरमल ने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया। उसके बाद इस भव्य मंदिर को सन 1632 ईस्वी में शाहजहां के आदेश पर तोड़ने के आदेश दे दिए गए लेकिन हिंदुओं के विरोध की वजह से इस मंदिर को शाहजहां की सेवा हाथ तक नहीं लगा सकी। काशी के अंदर अन्य लगभग 63 मंदिर मुस्लिम आक्रमण कार्यों के द्वारा तोड़ दिए गए थे। डॉक्टर एसएस भट्ट के द्वारा उनकी किताब में भी इन सभी का वर्णन किया गया है। 18 अप्रैल 1659 को औरंगजेब ने भी एक आदेश जारी किया। जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के आदेश दिए गए। औरंगजेब के द्वारा लिखित फरमान को आज भी कोलकाता लाइब्रेरी में सुरक्षित रखा गया है। उस समय उनके ने लिखित पुस्तक मसीदे आलमगीर में इसका वर्णन किया हैं। मंदिर को तोड़कर औरंगजेब के समय में ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था।

काल भैरव है काशी के कप्तान

काशी के कप्तान काल भैरव माने जाते हैं। भगवान शिव और पार्वती के वचन अनुसार इनका वहां का कप्तान बनाया गया है। हिंदू देवताओं में भी भैरव बाबा का बहुत महत्व है। इसी वजह से काशी में इनको कोतवाल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद अगर काल भैरव के दर्शन नहीं किए तो भगवान भोलेनाथ के दर्शन का महत्व नहीं होता है। इसीलिए लोग काल भैरव के दर्शन करने के लिए भी जाते हैं। भगवान शिव के रुधिर से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। भगवान के रुधिर के दो भाग हो गए थे जिनमें से पहले बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव के रूप में बन गया। दोनों की हमारे धर्म शास्त्रों में पूजा का विशेष उल्लेख बताया गया है और उनकी पूजा का बहुत प्रबल महत्व भी माना जाता है।

मोक्ष की नगरी है काशी

काशी बनारस को मोक्ष नगरी कहा जाता है कहते हैं काशी में जिस व्यक्ति की अगर मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति को खुद महादेव मुक्तिदायक तारक मंत्र देने के लिए आते हैं आज भी यहां पर बहुत से लोग जो अपने अंतिम समय में चल रहे हैं वह अपना अंतिम सांस या प्राण त्यागने के लिए काशी में ही आते हैं काशी में इसके लिए उचित व्यवस्था भी की गई है शास्त्रों के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसकी अस्थियां गंगा में विसर्जित की जाती है जो काशी में मुख्य रूप से की जाती है काशी को मोक्ष दाहिनी नगरी भी माना जाता है।

बनारसी पान और बनारसी साड़ी के लिए प्रसिद्ध है काशी

काशी विश्वनाथ को बनारस कहा जाता है आप सभी जानते हैं कि काशी यानी बनारस में बनारस का पान और बनारसी सिल्क की साड़ी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। इनको विश्व प्रसिद्ध भी कहा जाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय का नाम तो आपने सुने होगा जो कि भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां के लोग बड़े दिलचस्प किस्म के हैं। जिनको बनारसी बाबू कहा जाता है। इनका व्यवहार बहुत ही सरल और मीठा ज्ञानवर्धक होता है। यहां के लोग दिमाग से बहुत तेज होते हैं। आप सभी ने देखा ही होगा कि बड़े से बड़े नेता अभिनेता गायक संगीतकार, गीतकार नृत्य कार और कलाकार आपके यहां नगरी में देखने को मिल जाएंगे

उत्तरकाशी भी है काशी 

उत्तरकाशी के नाम को जाना जाता है उत्तरकाशी को छोटा काशी भी कहते हैं। उत्तरकाशी ऋषिकेश जिले में मुख्य केंद्र है। इसका एक भाग गढ़वाल राज्य का हिस्सा भी है। उत्तरकाशी सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान वाला शहर है। उत्तरकाशी की भूमि साधु संतों और आध्यात्मिक अनुभूति तपस्या स्थली मानी जाती है। दुनिया भर से लोग यहां इस भूमि पर वैदिक भाषा को सीखने के लिए आते हैं। महाभारत में एक महान साधु ने इस भूमि पर घोर तपस्या की थी। स्कंद पुराण के केदार खंड में भी आप उत्तरकाशी का वर्णन कर सकते हैं। जिसमें भागीरथी, जाह्नवी, भील गंगा इन सभी के बारे में भी बताया गया है

अहिल्याबाई होलकर के सपने में आए थे शिव

आप सभी जानते ही है कि रानी अहिल्याबाई होल्कर बहुत बड़ी शिव भक्त की और इस मंदिर के निर्माण में उनका बहुत बड़ा योगदान है ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव रानी अहिल्याबाई के सपने में आए थे और फिर रानी अहिल्याबाई ने इस मंदिर का वापस से निर्माण करवा कर काशी की महिमा को बढ़ाने का काम किया। इंदौर के महाराज रणजीत सिंह ने भी सोने के खाबो का निर्माण करवा कर बहुत बड़ा योगदान करवाया था। 

निष्कर्ष

तो दोस्तों, ये थी काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी।  अगर आप भी काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करना चाहते है तो आप भी वहाँ पर जरुर जाएँ।  हर व्यक्ति अपने जीवन में एकबार काशी विश्वनाथ मंदिर जरुर जाना चाहता है।  आशा करते है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी।  और रोचक जानकारी लेने के लिए हमारी वेबसाइट के साथ जुड़े रहे। MyChalisa.com से जुड़ें इस तरह की और जानकारी के लिए।

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माता वैष्णो देवी मंदिर, कथा और मान्यता https://mychalisa.com/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a5%8b-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/ https://mychalisa.com/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a5%8b-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/#comments Thu, 09 Nov 2023 05:55:35 +0000 https://mychalisa.com/?p=1541 माता वैष्णो देवी मंदिर देश के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। यह जम्मू में कटरा से करीब 14 ...

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माता वैष्णो देवी मंदिर देश के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। यह जम्मू में कटरा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर को माता रानी और वैष्णवी के नाम से जानते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने आते हैं। यहां की मान्यता है कि मां वैष्णो देवी के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता रानी का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त अपने अनुसार नंगे पैर भवन तक की चढ़ाई करते हैं। चलिए जानते हैं माता रानी की कथा और मान्यताओं के बारे में…

माता वैष्णो देवी कथा

वैष्णो देवी मंदिर पहाड़ की एक चोटी पर बना हुआ हैं। बताया जाता हैं, कि इस मंदिर का निर्माण 700 साल पहले पंडित श्रीधर ने कराया था। पंडित श्रीधर माता रानी के बहुत बड़े भक्त थे। इसी वजह से एक दिन माता उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनके सपने में आई और बोली हे भक्त तुम माता वैष्णो के निमित्त एक भंडारा करो, कहकर माता अंतर्ध्यान हो गई, इसके बाद अगली सुबह पंडित श्रीधर ने इस सपने की बात अपने परिवार वालों को बताई और फिर भंडारे का आयोजन किया।

पंडित श्रीधर बहुत ही गरीब थे। इसलिए वह भंडारे में आए भक्तों की भीड़ को देखकर चिंतित हो गये, बताया जाता है कि उनके इस भंडारे में एक बालिका शामिल थी। जो भक्तों को प्रसाद बांट रही थी वहीं जब किसी भक्त ने बालिका से उसका नाम पूछा तो बालिका ने अपना नाम वैष्णवी बताया, जब तक भंडारा चला वैष्णवी वहां मौजूद रही और फिर अंतर्ध्यान हो गई। जब श्रीधर को वैष्णवी के बारे में पता चला, तो पंडित श्रीधर वैष्णवी से मिलने को व्याकुल हो उठे।  उन्होंने भक्तों से बालिका के बारे में पूछा कि वो बालिका कहां गई?

लेकिन कोई भी  पंडित श्रीधर को वैष्णवी की जानकारी नही दे पाया। पंडित जी बालिका को ढूंढते रहे, लेकिन वह उन्हें कही नहीं मिली। फिर एक रात पंडित जी के सपने में आकर उस बालिका वैष्णवी ने बताया कि वो माता वैष्णवी हैं।  माता ने उन्हें चित्रकूट पर्वत पर स्थित गुफा के बारे में बताया, फिर पंडित श्रीधर ने गुफा ढूंढ कर माता वैष्णो की पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना की। उस वक्त से माता वैष्णो देवी की पूजा आज तक जारी है। बता दे कि आज के वक्त में यही गुफा माता वैष्णो देवी का मंदिर कहलाता है।

माता वैष्णो देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे?

माता रानी तक पहुंचने के लिए आपको जम्मू से कटरा शहर तक 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। हालांकि जो लोग पैदल यात्रा में असमर्थ है उनके लिए हेलीपैड भी उपलब्ध है। माता वैष्णो देवी गुफाओं और भैरव घाटी के बीच एक रोपवे  का निर्माण किया गया है। जिससे आप आसानी से भैरवनाथ के दर्शन कर सकते हैं।

अर्धकुमारी मंदिर की मान्यता

अर्धकुमारी मंदिर को गर्भ गुफा के नाम से भी जाना जाता है। इस गुफा को लेकर मान्यता है। कि यहां माता वैष्णो देवी ने पूरे 9 माह तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा के दर्शन करता है उसे मृत्यु और जीवन के चक्र से मुक्ति मिल जाती हैं। गर्भ गुफा का आकार दिखने में बहुत छोटा हैं लेकिन हर प्रकार का इंसान यहां से आसानी से निकल जाता है। बस उसके मन और दिल में माता रानी की भक्ति हो और किसी के लिए कोई गलत भावना ना हो।

किस रूप में है माता रानी

त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की तीन मूर्तियां हैं। जिसमे पहली मूर्ति काली देवी, दूसरी सरस्वती देवी, और तीसरी लक्ष्मी देवी पिंडी के रूप में गुफा में विराजित है। इन तीनों पिंडियों के रूप को वैष्णो देवी कहा जाता हैं। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फिट हैं। इस गुफा में एक बड़ा स्थान बना हुआ हैं। इस स्थान पर माता का आसन है। जहां देवी त्रिकुटा अपनी माता के साथ विराजमान रहती हैं। 

माता रानी ने भैरवनाथ का वध क्यों किया

बताया जाता है कि भैरवनाथ ने कन्या रूपी मां का हाथ पकड़ लिया, लेकिन माता ने अपना हाथ भैरव के हाथ से छुड़ाया, और त्रिकूट पर्वत की ओर चल पड़ी। भैरव उनका पीछा करते हुए उसी स्थान पर आ गया। वहां भैरव का सामना हनुमान जी से हुआ। हनुमान जी ने भैरव को रोकने की कोशिश की,  भैरव नहीं माना, फिर भैरव का युद्ध श्री हनुमान जी से विर लंगूर रूप में हुआ, जब हनुमान जी युद्ध में पस्त होते दिखे, 0तब माता वैष्णो ने महाकाली के रूप में भैरव का वध किया।

भवन और भैरवनाथ मंदिर की दूरी

भवन वह स्थान हैं जहां माता ने भैरवनाथ का वध किया था। प्राचीन गुफा के सक्षम भैरव का शरीर मौजूद है।और उसका सर उड़कर 3 किलोमीटर दूर भैरव घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया। जिस स्थान पर सर गिरा आज उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है। जो भवन तक करीब 13 किलोमीटर और भैरव मंदिर तक 14.5 किलोमीटर हैं। मान्यता है कि माता रानी के दर्शन के बाद भैरवनाथ के दर्शन के बिना यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।

कब हुआ मंदिर का निर्माण

बताया जाता हैं, कि वैष्णो देवी मंदिर का निर्माण 700 साल पहले एक ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर द्वारा कराया गया था माता रानी सबसे पहले श्रीधर को उनके सपने में दिखी थी। कटरा से लगभग मंदिर की ऊंचाई 5200 फीट पर हैं, जो 12 किलोमीटर की दूरी हैं यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने के लिए आते हैं।

क्या है इसकी मान्यता

हिंदू मान्यता के अनुसार वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित पवित्रम हिंदू मंदिरों में से एक हैं। इस धार्मिक स्थान को माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता हैं।‌ यहां माता के दर्शन के लिए हर दिन देश-विदेश से बड़ी मात्रा में लोग आते हैं। गर्मियों में यहां श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती हैं। नवरात्रि के टाइम यहां बहुत भारी भीड़ देखी जाती हैं।

माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग

ऑनलाइन बुकिंग करने के लिए श्रद्धालुओं को श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर श्रद्धालु के तौर पर खुद को रजिस्टर करना होगा। साथ ही यूजर आईडी और पासवर्ड बनाना होगा। अगर आप पहले से ही रजिस्टर हैं, तो आप अपने यूजर नेम और पासवर्ड से लॉगिन करें। ऑनलाइन यात्रा निशुल्क हैं। अगर आप अपना रजिस्ट्रेशन अपने फोन के द्वारा खुद ही पहले से कर लेते हैं, तो वहां आपको ज्यादा फॉर्मेलिटी की जरूरत नहीं होगी, और आपका इससे समय भी बचेगा।

निष्कर्ष

तो ये थी माता वैष्णो देवी मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी. माता वैष्णो देवी के भक्त पूरी दुनिया में है. हर साल लाखो भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए आते है. कुछ श्रद्धालुओं के मन में माता वैष्णो से जुड़ी बहुत सी जिज्ञासा है. हम उम्मीद करते है My Chalisa का हमारा ये लेख आपकी सभी जिज्ञासा को पूरी करेगा. धन्यवाद!!!

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