MyChalisa.Com https://mychalisa.com/ Wed, 09 Oct 2024 08:28:04 +0000 en-US hourly 1 https://wordpress.org/?v=6.6.2 https://mychalisa.com/wp-content/uploads/2023/03/cropped-om-e1677695067201-32x32.png MyChalisa.Com https://mychalisa.com/ 32 32 भगवान श्रीकृष्ण को क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग? https://mychalisa.com/chappan-bhog/ https://mychalisa.com/chappan-bhog/#respond Wed, 09 Oct 2024 08:28:02 +0000 https://mychalisa.com/?p=1684 जैसा कि आप सब जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को विष्णु भगवान का आठवां अवतार माना गया है। भगवान ...

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जैसा कि आप सब जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को विष्णु भगवान का आठवां अवतार माना गया है। भगवान श्री कृष्ण को हम सभी उनके अलग-अलग नाम से भी जानते हैं। बचपन से लेकर बड़े होने तक उन्हें अनेक नामों से जाना  गया। बाल लीला करने से लेकर, नटखट लीला सहित भगवान श्री कृष्ण का बचपन‌ बडा ही रोचक रहा है।

जहाँ भगवान श्री कृष्ण के द्वारा किए गए कंस के वध से लेकर, कुरुक्षेत्र में मानव के जीवन का गीता का उपदेश देकर एक नई कला सीखने को मिली। जो कि आज घर-घर में कलयुग के सभी मनुष्यों के लिए एक मोक्षदायिनी मार्ग बन चुकी है। गीता के ज्ञान के बारे में हर व्यक्ति जानता है। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा रचित भागवत गीता में जीवन जीने के सूत्र दिए गए हैं। जिसे जीवन में अपनाकर मनुष्य अपना जीवन बहुत ही सुखमय बना सकता है।

भगवान श्री कृष्णा बचपन से ही खाने पीने के भी बड़े शौकीन रहे हैं। बचपन में की गई माखन चोर की लीला से लेकर उनके छप्पन भोग के बारे में सभी लोग जानते हैं। ऐसा कहा जाता है कि मां यशोदा भगवान श्री कृष्ण को आठ पहर भोजन करवाती थी। क्या आप जानते हैं कि भगवान श्री कृष्ण को छप्पन भोग का भोजन क्यों लगाया जाता है? इसके पीछे की क्या वजह रही होगी? उन सभी के बारे में आपको यह विस्तार पूर्वक हम बताने वाले हैं..

छप्पन भोग लगने की वजह

भगवान श्री कृष्ण की हर लीला के बारे में आप सभी लोग जानते हैं आप जानते हैं कि उनका बचपन गोकुल में बीता है भगवान श्री कृष्ण को उनकी मां यशोदा उनके प्रिय भोजन प्रतिदिन आठ पहर मतलब दिन में आठ बार उनको अपने हाथों से भोजन करवाती थी। भगवान श्री कृष्ण ने अपने बचपन में अनेक लीलाएं की है। उन्हें में से एक लीला यह 56 भोग की भी शामिल है। 

एक बार जब सभी गोकुलवासी इंद्र की पूजा करने के लिए पकवान बनाकर ले जाने लगे। तब भगवान श्री कृष्ण ने इसका विरोध किया और उन्होंने गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए सभी गोकुल वासियों से आग्रह किया। सभी गोकुल वासियों ने भगवान श्री कृष्ण की इस बात का समर्थन किया क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर अनेक प्रकार के खाने की चीज, यहां तक की सभी गोकुल वासियों की गाय भी वहा रोजाना चरने के लिए जाया करती थी।‌ इसीलिए सभी गोकुलवासी गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए चल दिए।

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इससे नाराज होकर इंद्र देवता ने गोकुल पर लगातार बारिश की। भगवान श्री कृष्ण ने गोकुल वासियों की रक्षा हेतु गोवर्धन पर्वत अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। सभी गोकुलवासी उसी पर्वत के नीचे जाकर छुप गए थे। लगातार 7 दिन तक पानी की भयंकर मूसलाधार बारिश की। लेकिन इंद्र का क्रोध शांत नहीं हुआ। सातवें दिन जाकर इंद्र ने अपनी गलती को मान लिया और भगवान श्री कृष्ण से माफी भी मांगी। सभी गोकुल वासियों से भी माफी मांगी। तब से लेकर आज तक गोवर्धन पूजा का भी बड़ा महत्व है। 

जब 7 दिन लगातार भगवान श्री कृष्ण ने अपनी छोटी उंगली पर गोवर्धन पर्वत उठाई रखा तो उन्होंने अन्न का एक दाना अपने मुंह में नहीं लिया था। मां यशोदा को इस बात की बड़ी चिंता हुई और समस्त गोकुल वासियों ने और मां यशोदा ने मिलकर भगवान श्री कृष्ण के लिए 56 प्रकार के भोजन बनाएं। मां यशोदा भगवान श्री कृष्ण को दिन में आठ पहर भोजन करवाया करती थी। उनके अनुसार 7 दिन तक आठ पहर भजन के अनुसार 56 तरह के भोग भगवान श्री कृष्ण के लिए बनाए गए। तब से लेकर आज तक भगवान श्री कृष्ण को 56 तरह का भोग ही पूजा में लगाया जाता है।

छप्पन भोग की अन्य कथा

ऐसा माना जाता है कि भगवान श्री कृष्ण और राधा रानी एक कमल पर गोलोक में विराजमान रहते हैं। कमल के अंदर तीन तरह की परत शामिल हैं। जिनमें 56 पंखुड़ियां हैं उन पंखुड़ियां में से एक प्रमुख सखी मौजूद है और बीच में भगवान श्री कृष्णा विराजमान होते हैं। 56 पंखुड़ियां 56 सखियों का प्रतीक मानी गई है इसीलिए भगवान श्री कृष्ण को 56 तरह का भोग लगाया जाता है।

56 भोग का गणित

क्या आप जानते हैं आखिर छप्पन भोग का गणित क्या होता है? जैसा कि आप सब जानते हैं 6 तरह के स्वाद हम खा सकते हैं जिनमें अमल, नमकीन,‌मीठा,करवा,तीखा, कसैला यह मुख्य छह तरह के स्वाद होते हैं। इस तरह से इन 6 तरह के रसों को मिलाकर भगवान श्री कृष्ण के खाने के लिए 56 प्रकार के व्यंजन बनाए जाते हैं। कुल मिलाकर देखा जाए तो भगवान श्री कृष्ण को 56 प्रकार के भोग ही हम अर्पण करते हैं।‌ जिससे कि भगवान प्रसन्न भी होते हैं और हमारी पूजा भी पूर्ण मानी जाती है।

कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए गोपियों ने लगाए 56 भोग

श्रीमद् भागवत कथा के अनुसार एक मान्यता और 56 भोग के लिए बताई गई है। जिसमें बताया है कि भगवान श्री कृष्णा को गोपिया अत्यधिक प्रेम किया करती थी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए उन्होंने एक माह तक स्नान आदि करके मां कात्यायनी की पूजा अर्चना की। ताकि उनको मां कात्यायनी पति रूप में कृष्ण जैसा व्यक्ति प्रदान करें और उनकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो। तब भगवान श्री कृष्ण ने उनकी इस मनोकामना को पूर्ण किया और उनका व्रत समाप्त होने के बाद उद्यापन स्वरूप सभी गोपिकाओं ने 56 तरह का भोग भगवान श्री कृष्ण को भेंट किया था। तब से छप्पन भोग भगवान श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए लगाया जाता है। इस प्रकार 56 भोग के लिए श्रीमद् भागवत कथा में कई कथा वर्णित है।

निष्कर्ष

दोस्तों, ये थी भगवान श्रीकृष्ण को क्यों लगाया जाता है छप्पन भोग से जुड़ी कुछ अनोखी और दिलचस्प कथाएं. हम उम्मीद करते है कि ये जानकारी आपको बेहद पसंद आई होगी और आपके लिए काफी लाभदायक भी होगी. ऐसी ही और रोचक जानकारी लेने के लिए हमारे पेज से जुड़े रहे। Follow MyChalisa.com for more!

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जगन्नाथ पुरी के विश्व प्रसिद्ध मंदिर https://mychalisa.com/famous-temples-of-jagannath-puri-odisha/ https://mychalisa.com/famous-temples-of-jagannath-puri-odisha/#respond Thu, 20 Jun 2024 07:10:31 +0000 https://mychalisa.com/?p=1681 धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना गया है कि जब हम चारों धाम यात्रा पर जाते हैं तो चारों दिशाओं ...

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना गया है कि जब हम चारों धाम यात्रा पर जाते हैं तो चारों दिशाओं में भगवान श्री कृष्ण का स्थान और उनके प्राचीन मंदिर के दर्शन करने मिलते हैं। चारों धाम की यात्रा में हिमालय की ऊंची चोटी पर बद्रीनाथ धाम के दर्शन के लिए भी लोग जाते हैं। पश्चिम में द्वारकापुरी में भी भगवान श्री कृष्णा विराजमान है। ऐसी मान्यता है कि बद्रीनाथ धाम में स्नान द्वारकापुरी में कपड़े और जगन्नाथपुरी में भोजन का महत्व माना गया है। 

यहां दक्षिण में रामेश्वर धाम में जाकर भगवान विश्राम करते हैं। द्वापर युग के बाद में भगवान श्री कृष्णा पूरी तरह से जगन्नाथ पुरी में ही निवास करने लग गए। जगन्नाथ धाम भारत के प्रसिद्ध चार धामों में से एक प्रमुख धाम है। जिसमें आज भी भगवान विराजमान है। आज हम आपको जगन्नाथ पुरी विश्व प्रसिद्ध मंदिर के बारे में पूरी जानकारी विस्तार पूर्वक यहां बताने वाले हैं। ताकि आपको जगन्नाथ पुरी के सभी मंदिरों के बारे में और जगन्नाथ पुरी मंदिर के बारे में पूरी जानकारी सही ढंग से समझने को मिल सके.

जगन्नाथ पुरी के विश्व प्रसिद्ध मंदिर

जगन्नाथ पुरी भारत में सबसे अधिक प्रसिद्ध मंदिर में से एक जाना जाता है। यह उड़ीसा राज्य में है। हिंदुओं के चार प्रमुख बड़े तीर्थ स्थान में से एक नाम जगन्नाथ पुरी का शामिल है। भगवान शिव का यह विश्राम स्थल माना गया है। आईए जानते हैं कि कौन-कौन से जगन्नाथ पुरी के ऐसे विश्व प्रसिद्ध मंदिर हैं जिनको देखने के लिए विदेश से भी लोग आते हैं

1. जगन्नाथ पुरी मंदिर

जगन्नाथ पुरी का मंदिर 11वीं शताब्दी में राजा इंद्रधनुष नाम के राजा के द्वारा बनाया गया था। जगन्नाथ पुरी मंदिर में भगवान श्री कृष्ण साक्षात अपने भाई और बहन के साथ में यहां विराजमान होते हैं। यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यहां हर साल लाखों की संख्या में केवल भारत देश से नहीं बल्कि विदेश से भी भक्त दर्शन करने के लिए आते हैं। जगन्नाथ पुरी का यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार का ही मंदिर है।

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जगन्नाथ पुरी में उड़िया वास्तु कला से बना हुआ यह मंदिर बहुत प्रसिद्ध है। अनोखी चित्रकारी और कला की वजह से यह जाना जाता है। भगवान के भोग के लिए यहां मंदिर परिसर में भव्य प्रसाद बनाया जाता है और यह भगवान का जो प्रसाद बनाया जाता है मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है जो कि बहुत ही स्वादिष्ट होता है।

भगवान का भोग लगने के बाद यह भव्य प्रसाद सभी भक्तों को वितरित किया जाता है। मंदिर परिसर में जब आप दर्शन करने के लिए जाएं तो दर्शन करने का समय सुबह 8:30 से लेकर रात को 10:00 तक का होता है।

2. लोकनाथ मंदिर

जगन्नाथ पुरी में 11वीं शताब्दी में बनाया गया यह लोकनाथ मंदिर भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक है जगन्नाथ पुरी के प्रसिद्ध मंदिरों में यह शिव भगवान का प्रसिद्ध मंदिर जाना जाता है इस मंदिर की स्थापना भगवान राम के द्वारा की गई थी। यह मंदिर संगमरमर पत्थर से बना हुआ है बाकी के अन्य मंदिर परिसर का हिस्सा बलुआ पत्थर से बनाए गए है। यहां मंदिर के गर्भ ग्रह में शिवलिंग विराजमान है। जिसके ऊपर प्राकृतिक रूप का एक भव्य झरना निरंतर बहता रहता है। भगवान शिव की निरंतर जलधारा बहती रहती है। जो अपने आप में बहुत अलौकिक है। जब यह पर शिवरात्रि का पावन त्यौहार मनाया जाता है तो इस झरने के द्वारा चढ़े हुए जल को पूरा बाहर निकाल दिया जाता है ताकि बाहर से आने वाले सभी भक्तों को शिवलिंग के स्पष्ट रूप से दर्शन हो सके। साल में स्पष्ट रूप से शिवलिंग केवल मंगलवार से शनिवार को ही भक्तगण दर्शन के लिए देख सकते हैं।   

3. विमला मंदिर

जगन्नाथ पुरी में स्थित विमल मंदिर रोहिणी कुंड तालाब के पास स्थित है। यह जगन्नाथ मंदिर परिसर के अंदर ही मौजूद एक बहुत छोटा सा मंदिर है। लेकिन यह मंदिर भी विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को देवी विमला पर समर्पित किया गया है। यह एक प्रमुख शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ माना जाता है। इस मंदिर का निर्माण बलुआ पत्थर से किया गया है। मंदिर में स्थापत्य शैली का प्रयोग और देवल शैली का प्रयोग किया गया है। भगवान जगन्नाथ की पत्नी के रूप में विमल मंदिर को बनाया गया है। भगवान जगन्नाथ मंदिर परिसर की यह देवी संरक्षक देवी मानी जाती है।        

अगर आप जगन्नाथ मंदिर के दर्शन करने के बाद विमल मंदिर के दर्शन नहीं करते हैं तो आपके दर्शन का फल आपको नहीं मिलेगा। जगन्नाथ पुरी के मंदिर से मिलने वाले महाप्रसाद को भी पवित्र विमला देवी मंदिर की पूजा करने के बाद ही माना जाता है। पहली बार जब विमला देवी मंदिर के दर्शन करने जाते हैं तो वहां पर प्रसाद नहीं चढ़ाया जाता विशाल दुर्गा मां का यह मंदिर भव्य रूप से बनाया गया है यहां अगर आप दर्शन करने के लिए जाते हैं तो यह मंदिर सुबह 5:00 से 1:00 बजे तक खुलता है और शाम को 4:00 से 11:30 तक आप विमल मंदिर के दर्शन कर सकते हैं।

4. साक्षी गोपाल मंदिर 

साक्षी गोपाल मंदिर कालिंग शैली में बना हुआ भगवान कृष्ण का मंदिर है। यह मध्यकालीन युग में बनाया गया था जो भगवान कृष्ण के स्वरूप गोपीनाथ को पूर्ण रूप से समर्पित है। भगवान श्री कृष्णा का यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर मुख्य रूप से अपने प्रसाद के लिए जाना जाता है। यहां पर भोजन प्रसाद में चावल की जगह गेहूं से बने हुए प्रसाद का भोग लगता है। मंदिर में आंवला नवमी पर विशेष उत्सव आयोजित किया जाता है।

5. गुंडिचा मंदिर

जगन्नाथ पुरी का प्रसिद्ध मंदिर गुंडिचा मंदिर परिसर से मात्र 3 किलोमीटर दूरी पर स्थित है। मंदिर में 9 दिन तक भगवान श्री कृष्णा अपनी बहन और भाई के साथ में त्रिमूर्ति के रूप में स्थापित होते हैं। मंदिर के रथ यात्रा से जब वापस अपने घर जाते हैं और 7 दिनों तक वहाँ पर आराम करते हैं इस मंदिर का निर्माण भरे बलवा पत्थर से किया गया है और मंदिर में कलिंग वास्तु कला बनाया गया है भगवान श्री कृष्ण के जीवन को दर्शाने वाली छवियों को इस मंदिर में आप देख सकते हैं मंदिर परिसर में भगवान श्री कृष्ण की सभी लीलाओं के बारे में भी बताया गया है मुख्य रूप से यह मंदिर रथ यात्रा उत्सव से जाना जाता है।  

6  मारकंडेश्वर मंदिर

मारकंडेश्वर मंदिर जगन्नाथ पुरी का प्रसिद्ध मंदिर है यह वह मंदिर है जिसमें ऋषि मारकंडे के द्वारा घोर तपस्या की गई थी मार्कंडेय ऋषि ने जगन्नाथपुरी में पांच प्रसिद्ध शिव मंदिरों में से इस मंदिर में ध्यान किया इसलिए यह प्रसिद्ध मंदिर है। भगवान शिव की पूजा के लिए 52 प्रसिद्ध स्थान का यह एक प्रमुख स्थान माना गया है। यहां पर मंदिर में जैसे ही प्रवेश करते हैं तो 10 भुजाओं वाले नटराज की मूर्ति अलौकिक शोभा लिए विराजमान है। यहां पर आप भगवान शिव माता पार्वती गणेश जी कार्तिकेय की जटिल मूर्तियों को देख सकते हो। मंदिर के हर कोने में भगवान के अलग-अलग अवतार प्रदर्शित किए गए हैं। मंदिर के साइड में मारकंडे सरोवर में पानी की एक बड़ी टंकी है यह मंदिर जगन्नाथ पुरी के प्रसिद्ध मंदिरों में से एक माना गया है यहां पर बड़े-बड़े धार्मिक त्योहार और बड़े-बड़े अनुष्ठान का आयोजन भी किया जाता है।

7. अलरनाथ मंदिर

भगवान जगन्नाथ जी आषाढ़ महीने में पूरी तरह से हिंदू कैलेंडर के अनुसार जब असर महीना पड़ता है तो वह जगन्नाथ पुरी मंदिर छोड़ देते हैं। इस एक महीने के समय को अनावासर कहा जाता है।  इसका मतलब होता है कि अवसर की कमी।  इस एक समय के दौरान भगवान जगन्नाथ ब्रह्मगिरि के अलारनाथ मंदिर में अलर नाथ देव के रूप में प्रकट हो जाते हैं। अलारनाथ भगवान विष्णु का ही स्वरुप है और यह मंदिर उन्हीं को ही समर्पित किया गया है। जो उनके पीठासीर देवता है। इस चतुर्भुज देवता की मूर्ति में चक्रासन, गदा, कमल सब देखने को मिलते हैं। यहां पर चंदन यात्रा के दौरान चंदन उत्सव होता है जो की 21 दिन तक चलता है यह मंदिर भी प्रसिद्ध मंदिर है।

निष्कर्ष

तो ये है जगन्नाथ पुरी के विश्व प्रसिद्ध मंदिर (Famous Temples Of Jagannath Puri Odisha). आप जब भी इन मंदिर के दर्शन करने जाए तो ऊपर बताई गई बातो का ध्यान रखे. अगर आप इन मंदिर से जुडी और भी जानकारी लेने के इच्छुक है तो हमे जरुर बताएं. हम आपके सभी प्रश्नों का उत्तर जल्द देंगे. Follow MyChalisa.com for more!

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भुवनेश्वर के विश्व प्रसिद्ध मंदिर (Famous Temples Of Bhubaneswar Odisha) https://mychalisa.com/temples-of-bhubaneswar/ https://mychalisa.com/temples-of-bhubaneswar/#respond Tue, 11 Jun 2024 08:08:55 +0000 https://mychalisa.com/?p=1676 भुवनेश्वर ओडीशा राज्य का वह शहर है जिसको मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यह राज्य उड़ीसा की राजधानी ...

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भुवनेश्वर ओडीशा राज्य का वह शहर है जिसको मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यह राज्य उड़ीसा की राजधानी भी है। यहां देश के ही नहीं बल्कि विदेश के भी लाखों की संख्या में पर्यटक घूमने के लिए आते हैं। एक तरह से यह पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करने वाला शहर है। भुवनेश्वर शहर का नाम संस्कृत भाषा से त्रिभुवनेश्वर शब्द से लिया गया है। त्रिभुवनेश्वर का मतलब तीनों लोकों के भगवान शिव के नाम से आधारित है।

यहां पर भगवान शिव के अधिक संख्या में मंदिर है और जो श्रद्धालु भक्तगण भगवान शिव के प्रति अटूट आस्था रखते हैं। वह यहां निरंतर आते रहते हैं। इस जगह पर आठवीं शताब्दी से लेकर 12वीं शताब्दी के दौरान के अति प्राचीन मंदिर है। इसके अलावा भी यहां और बहुत से मंदिर ऐसे हैं जो न केवल देश में ही नहीं बल्कि विदेश में भी अपनी एक अलग ही पहचान लिए हुए हैं।   

यहां मंदिर न केवल अति प्राचीन है बल्कि उनकी अलौकिक भव्यता सुंदरता कलाकारी भी अपने आप में एक अलग ही पहचान लिए हुए हैं। आज हम आपको भुवनेश्वर के कुछ विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानकारी देंगे जिनके बारे में शायद आपको अभी तक नॉलेज नहीं है तो चलिए जानते हैं भुवनेश्वर के कुछ विश्व प्रसिद्ध मंदिर की पूरी जानकारी यहां इस लेख के माध्यम से आप सभी के लिए..

1. लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर

उड़ीसा भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर सबसे ज्यादा प्राचीन मंदिर है और यह मंदिर भुवनेश्वर का सबसे बड़ा मंदिर भी माना जाता है। जैसा कि आप सब जानते हैं भुवनेश्वर मंदिर इसके नाम से ही पता चलता है कि इस मंदिर को भगवान शिव को समर्पित किया गया है। भुवनेश्वर के लिंगराज मंदिर का निर्माण सातवीं शताब्दी में राजा केसरी के द्वारा करवाया गया था क्योंकि लिंगराज मंदिर भुवनेश्वर का सबसे पुराना मंदिर है इसीलिए यहां पर भगवान शिव की हरिहर के रूप में पूजा की जाती है।

 एक तरह से देखा जाए तो लिंगराज मंदिर भगवान शिव और विष्णु का एक संयुक्त स्वरूप माना गया है। इसी वजह से इस मंदिर पर हजारों लाखों की संख्या में श्रद्धालु देश से ही नहीं बल्कि विदेश से भी आते हैं। इस मंदिर के निर्माण कार्य में कलिंग और देवल वास्तुकला का प्रतिनिधित्व किया गया है। मंदिर में चार तरह के भाग बनाए गए हैं। जिसमें गर्भ ग्रह यज्ञशाला भोग मंडल और नाट्यशाला शामिल है। यहां पर मां देवी भगवती को समर्पित एक छोटा सा आंगन भी बनाया गया है। जो उत्तर पश्चिम कोने में स्थित है।  

मंदिर में अगर भक्तगणों की बात की जाए तो प्रतिदिन 6000 से भी अधिक श्रद्धालु गण यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं और दर्शन करने के लिए यहां विदेश से भी श्रद्धालु आते हैं।

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2. राजरानी मंदिर भुवनेश्वर

भुवनेश्वर में अति प्रसिद्ध मंदिरों में से एक मंदिर राजरानी का मंदिर भी शामिल है। इस मंदिर को भगवान के प्रेम स्वरूप की वजह से जाना जाता है। यहां पर कुछ महिला जोड़ों की ऐसी कामुक नक्काशी बनाई गई है। उन्हीं की वजह से इस मंदिर को प्रेम मंदिर के स्वरूप के रूप में भी लोग पहचानते हैं। हालांकि इस मंदिर का आकार लिंगराज मंदिर की तरह नहीं है बल्कि थोड़ा छोटा है।

राजरानी मंदिर भी 11वीं शताब्दी में कलिंग वास्तुकला पर ही बनाया गया था। इस मंदिर में कोई गर्भ ग्रह नहीं है ना कोई यहां कोई चित्र नक्काशी देखने को मिलेगी। हिंदू धर्म के किसी विशेष संप्रदाय से भी यह मंदिर नहीं जुड़ा हुआ है। राजरानी के इस मंदिर का निर्माण भी उड़ीसा के जगन्नाथ पुरी मंदिर के निर्माण के समय का ही बताया गया है यहां पर विराजित सभी मूर्तियां भगवान शिव और मां पार्वती के विवाह का प्रतीक मानी गई है। 

3. परशुरामेश्वर मंदिर

परशुरामेश्वर मंदिर भी भुवनेश्वर का प्रसिद्ध मंदिर है। इसका निर्माण पुलिया शैली स्थापत्य कला में किया गया है। 650 ईस्वी में बनाया गया यह मंदिर स्थापित कला का एक बहुत ही बेमिसाल उदाहरण है। परशुराम रामेश्वर मंदिर को सातवें-आठवीं शताब्दी के बीच में काल के अंतर्गत बनाया गया था। यह मंदिर इसलिए खास है क्योंकि इस मंदिर के परिसर में उत्तर पश्चिमी कोने में 1000 से भी अधिक शिवलिंगों की उपस्थिति मौजूद है। 

यह मंदिर पूरी तरह से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के अधीन आता है। इसके अलावा यहां पर भगवान शिव पार्वती और गणेश जी की सुंदर नक्काशी से सुशोभित प्रतिमाएं मौजूद हैं। जो अपने आप में अद्भुत अलौकिक है। यहां पर भी हजारों की संख्या में प्रतिदिन दर्शनार्थी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

4. मुक्तेश्वर मंदिर भुवनेश्वर

भुवनेश्वर का यह मुक्तेश्वर मंदिर बड़ा प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कार्य दसवीं शताब्दी में किया गया था। यह मंदिर भी भगवान शिव को ही समर्पित है और दसवीं शताब्दी का कलिंग शैली स्थापित शैली का एक अद्भुत उदाहरण भी है मंदिर में ऊपर शीर्ष पर सभी जो देवी देवताओं की मूर्तियां विराजमान है। वह मुख्य रूप से बौद्ध धर्म के प्रभाव को दर्शाती हैं। इस मंदिर में बौद्ध धर्म और हिंदू धर्म की कला देखने को मिलती है।    

मुख्य रूप से इस मंदिर में तोरण और मेहराब प्रसिद्ध है जिसमें विस्तृत रूप से महिलाओं के गने अन्य डिजाइन से इसको सजाया गया है। मंदिर का निर्माण कालिंग स्थापत्य शैली से किया गया है। यहां पर मौजूद सभी मूर्तियों में पंचतंत्र की कहानी और सुंदर नक्काशी भी आप देख सकते हैं। यह मंदिर भी भवन भुवनेश्वर का प्रसिद्ध मुक्तेश्वर मंदिर है यहां पर भी हजारों शिव भक्त प्रतिदिन दर्शन करने आते हैं।

5. राम मंदिर भुवनेश्वर

भुवनेश्वर का राम मंदिर भी प्रसिद्ध मंदिर है इस मंदिर में राम भगवान अपनी पत्नी सीता मां और अपने भाई के साथ विराजमान है। यह भगवान का बड़ा ही सुंदर मंदिर है। इसके अलावा आप इस मंदिर में भगवान शिव और अन्य सभी देवताओं के मंदिर भी देख सकते हो। 

 मुख्य रूप से इस मंदिर की आरती बड़ी प्रसिद्ध है। सुबह की आरती के शब्द पर्यटकों को अपनी तरफ आकर्षित करते हैं। देखा जाए तो सुबह की आरती की वजह से ही ये मंदिर बड़ा प्रसिद्ध है। मंदिर के शिखर को बहुत ही सुंदर दर्शाया गया है। जिसमें विभिन्न स्थानों की छवि भी आप देख सकते हैं। 

6. अनंत वासुदेव मंदिर भुवनेश्वर

भुवनेश्वर में स्थित अनंत वासुदेव मंदिर को 13वी शताब्दी में बनाया गया था। जैसा कि आप इसके नाम से ही समझ सकते हैं। मुख्य रूप से यह मंदिर भगवान विष्णु के अवतार श्री कृष्ण भगवान को समर्पित है। यह एकमात्र इकलौता ऐसा मंदिर है जो केवल भगवान कृष्ण के नाम से बनाया गया है। यहां पर मुख्य रूप से आपको अधिक शिव मंदिर शिव संप्रदाय के देखने को मिलेंगे। 

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यह एकमात्र मंदिर जो की वैष्णव संप्रदाय से जुड़ा हुआ है। अनंत वासुदेव मंदिर उड़ीसा के प्रसिद्ध लिंगराज मंदिर से मिलता जुलता मंदिर है। इस मंदिर में आप काफी हद तक वैष्णव संप्रदाय की मूर्तियां देख सकते हैं। मंदिर के निर्माण कार्य में लकड़ी की जगह ग्रेनाइट पत्थर को काम में लिया गया था। 

7. ब्रह्मेश्वर मंदिर भुवनेश्वर

भुवनेश्वर में ब्रह्मेश्वर मंदिर भी प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर कोलावती देवी के बेटे के द्वारा 1058 से 1060 ईस्वी में बनाया गया था। ब्रह्मेश्वर मंदिर में आप उड़िया शैली की स्थापत्य कला देख सकते हैं। एक तरह से यह उड़िया सैनिक की प्रतिभा का एकमात्र अवशेष है। 11वीं शताब्दी तक इस मंदिर को चार छोटे मंदिरों से बनाया गया था। 

मुख्य रूप से यहां पर एक भगवान शंकर का मंदिर है जो कि भगवान साक्षात शिवलिंग रूप में विराजमान है। साथ में यहां पर पुरी शिव पंचायत मौजूद है। यहां इस मंदिर की जो खूबसूरत नक्काशी की गई है। यह विश्व प्रसिद्ध है जो कि यहां पर आने वाले सभी दर्शनार्थियों को अपनी तरफ खींच लेती हैं।

निष्कर्ष

MyChalisa.com पर हमने आपको सभी भुवनेश्वर के विश्व प्रसिद्ध मंदिर (Famous Temples Of Bhubaneswar Odisha) बताएं है। हम उम्मीद करते है कि ये जानकारी आपके लिए बेहद लाभदायक रहेगी। और जानने के लिए MyChalisa.com को follow करे!

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सोमनाथ के प्रमुख प्रसिद्ध मंदिर (Famous Temples Of Somnath Gujarat) https://mychalisa.com/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%96-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%a6%e0%a5%8d/ https://mychalisa.com/%e0%a4%b8%e0%a5%8b%e0%a4%ae%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%ae%e0%a5%81%e0%a4%96-%e0%a4%aa%e0%a5%8d%e0%a4%b0%e0%a4%b8%e0%a4%bf%e0%a4%a6%e0%a5%8d/#comments Thu, 06 Jun 2024 08:57:25 +0000 https://mychalisa.com/?p=1674 गुजरात के सोमनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसके अलावा सोमनाथ मंदिर परिसर के तहत भी ...

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गुजरात के सोमनाथ मंदिर 12 ज्योतिर्लिंगों में से एक प्रसिद्ध मंदिर है। इसके अलावा सोमनाथ मंदिर परिसर के तहत भी अन्य कई प्रसिद्ध मंदिर है। जिनके बारे में लोगों को जानकारी नहीं है। आज भी यह ऐसे विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। जिनमें हजारों लाखों की संख्या में लोग आते हैं। आज हम आपके यहां सोमनाथ के कुछ विश्व प्रसिद्ध मंदिर के बारे में जानकारी देने जा रहे हैं। जो कि अपने आप में एक अलौकिक श्रद्धा और आस्था का केंद्र है। सोमनाथ मंदिर के बारे में तो सभी लोग बहुत अच्छे से जानते ही है। इसके अलावा अन्य सभी प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानकारी आपको यहां इस लेख में हम बताने जा रहे हैं..

1. सोमनाथ मंदिर

सोमनाथ मंदिर गुजरात के काठियावाड़ क्षेत्र में समुद्र तट के किनारे बसा हुआ विश्व प्रसिद्ध मंदिर है। यह भगवान शिव का प्रसिद्ध मंदिर है। जो कि 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहले ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है। सोमनाथ मंदिर पर प्रतिवर्ष लाखों की संख्या में दर्शन करने के लिए आते हैं। यह हिंदुओं की आस्था का एक बहुत बड़ा पवित्र तीर्थ स्थान माना गया है। प्रभास क्षेत्र में स्थित द्वादश ज्योतिर्लिंग में प्रमुख ज्योतिर्लिंग सोमनाथ की महिमा का वर्णन आप सभी बड़े महापुराण में भी विस्तार से पढ़ सकते हैं।

सोमनाथ मंदिर भगवान चंद्र देव का ही स्वरुप है। चंद्र देव ने शिवजी की कठोर आराधना करके शिव को अपना स्वामी मानकर तपस्या की थी इस वजह से इस ज्योतिर्लिंग का नाम सोमनाथ हो गया है।

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इतिहासकारों के अनुसार सोमनाथ मंदिर पर समय-समय पर अनेक आक्रमण किए गए हैं। यहां मंदिर परिसर में बहुत अधिक तोड़फोड़ की गई है। मोहम्मद गजनवी के द्वारा तो 17 बार आक्रमण किए गए थे। लेकिन समय समय पर इस मंदिर का जीवन आधार भी करवा दिया गया है। मंदिर पर इस तरह के कालखंड का कोई आक्रमण नहीं देख सकते है। सृष्टि की रचना के समय से लेकर अब तक शिवलिंग का यहां प्रमाण मिलता है। इसका वर्णन आप ऋग्वेद में भी पढ़ सकते हैं।

सोमनाथ मंदिर के शुरुआत में प्रभात क्षेत्र शुरू हो जाता है। ऐसा माना जाता है। कि भगवान श्री कृष्ण ने जब अपना अंतिम समय में शरीर त्याग दिया था यह जगह उनके देह त्याग ‌की वजह से प्रसिद्ध है। 

हिंदू धर्म के अनुसार 12 ज्योतिर्लिंगों में से पहले ज्योतिर्लिंग सोमनाथ ज्योतिर्लिंग है। अर्थात इस ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बाद ही काशी विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग की स्थापना और बाकी अन्य की स्थापना की गई थी। इसीलिए सोमनाथ ज्योतिर्लिंग हिंदुओं का एक प्रसिद्ध विश्व प्रसिद्ध तीर्थ स्थान माना जाता है।

2. द्वारकाधीश मंदिर

गुजरात के सोमनाथ मैं द्वारकाधीश मंदिर भी प्रसिद्ध मंदिर है। यह भगवान कृष्ण के स्वरूप को समर्पित है। इस मंदिर को जगत मंदिर त्रिलोक सुंदर मंदिर के नाम से भी जानते हैं। द्वारकाधीश मंदिर हिंदू धर्म के अनुसार चार धाम तीर्थ का भी एक प्रमुख हिस्सा है। द्वारकाधीश का यह मंदिर आज का नहीं बल्कि 2500 साल से भी अधिक पुराना है। मंदिर देश दुनिया के सभी भक्तों के लिए आकर्षण का केंद्र है। मंदिर के शिखर पर एक ध्वज लहराता रहता है। 

जिस पर सूर्य और चंद्रमा के चिन्ह अंकित है। इस ध्वज को दिन में तीन बार बदला जाता है।। मंदिर में जाने का समय सुबह 6:30 से लेकर दोपहर 1:00 तक और शाम को 5:00 से रात्रि 9:00 तक दर्शन का समय है। यहां पर जाने के लिए आप हवाई मार्ग का भी चुनाव कर सकते हैं। इसके अलावा आप बस गाड़ी ट्रेन किसी से भी यहां पहुंच सकते हैं।

3. चंद्रभागा शक्तिपीठ

चंद्रभागा शक्ति पृथ्वी गुजरात के सोमनाथ क्षेत्र के अंतर्गत ही आता है। यह त्रिवेणी संगम नदी के तट पर बना हुआ 52 शक्तिपीठों में से एक प्रमुख शक्तिपीठ है। चंद्रभागा शक्तिपीठ का वर्णन आप हमारे हिंदू धर्म के शस्त्र पुराणों में भी पढ़ सकते हैं। चंद्रभागा शक्तिपीठ और त्रिवेणी संगम भी है। क्योंकि यहां तीन नदियों का संगम होता है। इसलिए लोग यहां स्नान आदि करने के लिए आते हैं।

4. भालका तीर्थ 

भालका तीर्थ गुजरात के सोमनाथ क्षेत्र में ही आता है। इस तीर्थ के बारे में ऐसी मान्यता है। कि भगवान श्री कृष्णा जब द्वारका निवास करते थे और जिस समय वह यहां वन में निवास कर रहे थे। भील के द्वारा तीर मारे जाने के बाद में इस स्थान को तीर्थ स्थान बना दिया गया था। भगवान के द्वारा उनकी लीला समाप्त करने का जब समय आ गया था तो वह इसी जगह पर आकर पेड़ के नीचे खडे हो गये थे। जहां पर भील के द्वारा उनको बाद में मारा गया था।

1. श्री राम मंदिर सोमनाथ

गुजरात में श्री सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के द्वारा दसवीं के दिन भगवान राम के एक भव्य मंदिर का निर्माण किया गया था। इस मंदिर को ही श्री राम मंदिर के नाम से ही जानते हैं यह मंदिर भी बड़ा प्रसिद्ध मंदिर है। इस मंदिर को सोमनाथ श्री राम मंदिर के नाम से ही जाना जाता है। सोमनाथ में सबसे पहले भगवान शिव और श्री कृष्ण के ही मंदिर सबसे ज्यादा देखने को मिलते थे लेकिन अब सोमनाथ मंदिर ट्रस्ट के प्रयास के कारण अब यहां पर त्रिवेणी संगम पर आने वाले सभी भक्तों को आशीर्वाद देने के लिए ही श्री राम मंदिर बनाया गया है।

श्री राम मंदिर के गेट को धनुष आकार दिया गया है। सोमनाथ मंदिर, सोमनाथ त्रिवेणी, संगम परशुराम, मंदिर सूर्य, मंदिर गीता, इन सभी को आप यहां श्री राम मंदिर की बालकोनी से आसानी से देख सकते हैं। श्री राम मंदिर में बड़े-बड़े हॉल लोगों के बैठने के लिए और थिएटर, सभी बनाए गए हैं। यह मंदिर भी अपने आप में एक अलौकिक मंदिर की इस श्रेणी में आता है। यहां पर भी प्रतिवर्ष हजारों की संख्या में श्रद्धालु देश-विदेश से दर्शन करने आते हैं।

2. सूर्य मंदिर सोमनाथ

सूर्य मंदिर गुजरात सोमनाथ का सबसे पुराना मंदिर है। ऐसा माना जाता है कि यह भगवान सूर्य देव और छाया देवी के विग्रह का प्रतीक है। पांडवों ने भगवान सूर्य की तपस्या करके उन्हें प्रसन्न किया था और यहां इस जगह जाकर पांडवों ने कठिन तप किया था। भगवान सूर्य की आराधना की थी। जब पांडवों का अज्ञातवास का समय चल रहा था। उस समय पर पांडव यहां सोमनाथ के इस सूर्य मंदिर में आए और भगवान सूर्य की तपस्या भी की थी।

सूर्य मंदिर की पूर्ण रूप से स्थापना 11वीं शताब्दी में सोलंकी राजवंश के राजा भीमसेन प्रथम के द्वारा की गई थी सूर्य मंदिर अहमदाबाद से लगभग 106 किलोमीटर दूर उत्तर पश्चिम की तरफ मोधेरा की पहाड़ी पर बनाया गया है। यह गुजरात के सोमनाथ का सबसे सुंदर खूबसूरत हिंदू मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण कार्य इस तरह से किया गया है। कि सूर्योदय से सूर्यास्त तक सूर्य का तेज उसकी छवि चक्र के समान चमकते हुए दिखाई देता है।

3. अंबाजी का मंदिर

गुजरात में अंबाजी का मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर अहमदाबाद से लगभग 169 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। और यह माता पार्वती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ के तहत आता है। इस मंदिर में दुनिया भर से श्रद्धालु आते हैं। इस मंदिर का निर्माण वल्लवी शासक सूर्यवंशी सम्राट अरुण सेन के द्वारा चौथी शताब्दी में करवाया गया था। मंदिर पर जाने के लिए सीडी का सहारा लेना पड़ता है। लगभग 1000 सीडी पर चढ़कर मां के दर्शन करने के लिए पहुंच जाता है।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में हमने आपको सोमनाथ के प्रमुख प्रसिद्ध मंदिर के बारे में विस्तार में जानकारी दे दी है. आशा करते है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी और आपके लिए लाभदायक भी रही होगी. अगर आपको इस लेख से जुडी और कोई जानकारी भी चाहिए तो हमे नीचे कमेंट box में पूछना न भूले.  और जानने के लिए MyChalisa.com को विजिट करे।

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भारत के चार धाम (Char Dham In India) https://mychalisa.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%ae-char-dham-in-india/ https://mychalisa.com/%e0%a4%ad%e0%a4%be%e0%a4%b0%e0%a4%a4-%e0%a4%95%e0%a5%87-%e0%a4%9a%e0%a4%be%e0%a4%b0-%e0%a4%a7%e0%a4%be%e0%a4%ae-char-dham-in-india/#comments Tue, 28 May 2024 07:51:57 +0000 https://mychalisa.com/?p=1670 दोस्तों, भारत देश में बहुत सारे मंदिर और तीर्थ स्थल है जो दुनियाभर में लोगो की आस्था का केंद्र बने ...

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दोस्तों, भारत देश में बहुत सारे मंदिर और तीर्थ स्थल है जो दुनियाभर में लोगो की आस्था का केंद्र बने हुए है। लेकिन इनमे से सबसे ज्यादा अगर कोई प्रसिद्ध है तो वो है भारत के चार धाम। जो है बद्रीनाथ, रामेश्वरम, जगन्नाथ पूरी, और द्वारिका। इनके दर्शन करने के लिए दुनियाभर से हर साल करोड़ो लोग आते है। 

हमारे पुराणों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति इन चारो धाम के दर्शन करता है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। इन चार धाम को चतुर धाम भी कहा जाता है। इन चार धाम में से तीन धाम बद्रीनाथ, द्वारका और पुरी विष्णु के मंदिर हैं, जबकि रामेश्वरम शिव का मंदिर है। 

ये चारो धाम भारत की अलग-अलग दिशा में स्तिथ है। हमारे हिन्दू पुराणों में भगवान विष्णु और भगवान शिव को शास्वत मित्र कहा गया है। ऐसी मान्यता है कि जहाँ पर भगवान विष्णु निवास करते है उन्ही के पास में ही भगवान शिव भी रहते है। इसीलिए केदारनाथ को बद्रीनाथ की जोड़ी, रंगनाथ स्वामी को रामेश्वरम की, सोमनाथ को द्वारका, लिंगराज को पुरी की जोड़ी के रूप में माना जाता है।

इससे अलग आपको ये जानकर हैरानी होगी कि भारत के चार धाम और उत्तराखंड के चार धाम अलग-अलग है। उत्तराखंड के चार धाम के नाम यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ धाम है। इन्हें छोटा चार धाम के नाम से भी जाना जाता है। 

आज के इस लेख में हम आपको भारत के चार धाम के बारे में विस्तारपूर्वक बताने जा रहे है। 

1. बद्रीनाथ धाम 

केदारनाथ और बदरीनाथ भारत देश में बहुत ही महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है जिनके दर्शन के लिए भक्तजन दूर-सूर से आते है। बद्रीनाथ धाम भारत की उत्तर दिशा में अलकनंदा नदी के किनारे बसा हुआ है। हिन्दू पुराणों के अनुसार इस पवित्र धाम को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम द्वारा बसाया गया था। यहाँ पर हर साल अचल ज्ञान ज्योति के प्रतिक के रूप में अखंड दीप प्रज्जवलित किया जाता है और नर नारायण की पूजा की जाती है। बद्रीनाथ धाम के कपाट दर्शन के लिए साल में केवल 6 महीने के लिए खुलते है। बाकी 6 महीने बद्रीनाथ बर्फ की चादर में पूरा ढक जाता है। ऐसा माना जाता है कि 6 महीने के लिए भगवान नारायण यहाँ पर विश्राम करने के लिए आते है। 

हर साल बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए लगभग लाखो भक्त आते है जिनके लिए सरकार द्वारा बेहद ही अच्छा इंतजाम किया जाता है ताकि इन्हें यात्रा और दर्शन के समय कोई भी परेशानी न हो। बदरीनाथ का इतिहास आप पुराणों से जान सकते है। कहते है कि पुराने समय में बेर को बद्री कहा जाता था और इस शहर में बद्री के वन होते थे जहाँ पर भगवान नारायण ने तपस्या की थी। इनके बचाव के लिए माता लक्ष्मी ने बद्री पेड़ का रूप लिया था जिसकी वजह से इस शहर का नाम बद्रीनाथ पड़ा। 

बद्रीनाथ के दर्शन के लिए जून और सितम्बर का समय सबसे अच्छा माना गया है क्यूंकि तब यहाँ का मौसम सबसे ठीक होता है। जिसकी वजह से भक्त जन भी बिना किसी कठिनाई के दर्शन कर पाते है। 

बद्रीनाथ के दर्शन करने के लिए भक्तो को पैदल यात्रा करनी पड़ती है लेकिन अब सरकार ने भक्तो की सुविधा के लिए हेलीकाप्टर सेवा भी शुरू कर दी है जो सीधा बद्रीनाथ मंदिर पर उतारता है। 

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2. रामेश्वरम धाम

रामेश्वरम धाम भारत के दक्षिण राज्य तमिलनाडु के रामनाथपुरम जिले में समुद्र के किनारे बसा हुआ है। इस तीर्थ स्थान के चारो तरफ हिन्द महासागर और बंगाल की खाड़ी जैसे बड़े समुन्द्र है। हिन्दू पुराणों के अनुसार जब भगवान राम लंका की चढ़ाई शुरू करने वाले थे तो इससे पहले भगवान राम ने समुन्द्र किनारे भगवान शिव की लिंग रुपी शिवलिंग बनाकर उनकी पूजा की थी। इसीलिए ये धाम भगवान शिव को समर्पित है। तब से यहाँ पर भगवान शिव की पूजा होती आ रही है। भक्तो की मान्यता के अनुसार रामनाथ स्वामी मंदिर में स्थित अग्नि तीर्थम में नहाने से भक्तो के सभी पाप नष्ट हो जाते है। 

3. जगन्नाथ पुरी धाम  

भारतवर्ष के पूर्व में बसा उड़ीसा राज्य के तटवर्ती शहर पुरी में स्थित है भगवान कृष्ण को समर्पित किया गया जगन्नाथ मंदिर। भगवान जगन्नाथ भगवान श्री कृष्ण का ही दूसरा नाम है। ये मंदिर वैष्णव संप्रदाय का मंदिर माना जाता है। यहां पर भगवान जगन्नाथ उनके बड़े भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की पूजा की जाती है। 

पूरे भारत में केवल यह ही एक ऐसा मंदिर है जिसमे भाई बलभ्रद के साथ-साथ उनकी बहन देवी सुभद्रा की भी पूजा होती है। जगन्नाथ पूरी के मंदिर भारत के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। करीबन 1 हजार वर्ष पहले ये मंदिर अनंतवर्मन चोदगंग ने राजा तृतीय अनंग भीम देव के साथ मिलकर बनाए थे। 

पुराणों के अनुसार किसी भी मनुष्य की तीर्थ यात्रा पूरी के मंदिर के दर्शन किए बिना पूरी नहीं हो सकती। यह इतनी पवित्र भूमि है जिसकी वजह से पुराणों में इस भूमि को अलग-अलग नामो से पुकारा गया है जैसे नीलाचल, शंख क्षेत्र, निलाद्री, श्रीक्षेत्र, जगनाथ पुरी, पुरूषोत्तम धाम आदि।

हर वर्ष यहां पर रथ यात्रा का आयोजन होता है। इस यात्रा में लाखों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं। इस यात्रा में मंदिर के तीनों देवता अलग-अलग भव्य सुसज्जित रत्नों से विराजमान होकर नगर में यात्रा करते हैं।  

यह त्यौहार जुलाई महीने में आता है। इस महीने में आप इस रथ यात्रा में शामिल होकर देख सकते है कि कैसे इस शहर ने हिन्दू संप्रदाय को संभाला हुआ है। 

4. द्वारका धाम

द्वारका भारत में पश्चिमी दिशा में गुजरात में बसा हुआ है। यह शहर भारत में सबसे पवित्र शहर की लिस्ट में सातवे नंबर पर आता है। जिसमे पहले अयोध्या, पूरी, मथुरा जैसे दूसरे शहर आते है। पुराणों के अनुसार यहाँ पर भगवान कृष्ण ने निवास किया था। 

आपको ये जानकार आश्चर्य होगा कि क्यूंकि ये शहर समुन्द्र के किनारे बसा हुआ है इसीलिए ये लगातार छह बार पूरी तरह से नष्ट हो चूका है और जो अभी आधुनिक शहर आप देखते है, यह सातवी बार बसा है। 

ऐसा कहा जाते है कि कृष्ण के पोते राजा वज्र ने इस मंदिर को सोलहवी शतब्दी में बनाया था। इस मंदिर का नियम है कि दिन में पांच बार मंदिर के ऊपर शीर्ष पर झंडा फेहराया जाएगा। 

भक्तो के दर्शन करने के लिए मंदिर में दो द्वार बनाए गए है जिनका नाम “स्वर्ग द्वार” रखा गया है। निकास द्वार को मोक्ष द्वार का नाम दिया गया है। इस मंदिर का दृश्य बेहद ही मनमोहक है। जब गोमती नदी को समुन्द्र की तरफ बहते हुए देखा जाता है तो ये द्रश्य सबकी आँखों को बेहद ठंडक देता है। द्वारिका मंदिर के अलावा इस शहर में और भी देवी-देवताओं के मंदिर बसे हुए है जैसे देवकी, बलराम, सुभद्रा, देवकी, सत्यभामा देवी, जाम्बवती देवी और रुक्मणी देवी के मंदिर। इस शहर में ही जगत मंदिर भी बसा हुआ है। द्वारिका शहर के पास ही शिव के बारह ज्योतिर्लिंग में से एक नागेश्वर ज्योतिर्लिंग भी स्तिथ है   

इसके अलावा पुरी, ज्योतिर्मठ और श्रृंगेरी के साथ, द्वारका पीठ भी यही स्तिथ है, जो चार मठों का सदस्य है। इस मंदिर में भगवान की पोशाक कल्याण कोलम है, जो मुख्य रूप से शाही परिवारों की शादी की पोशाक है। 108 दिव्य देशम में से यह एक है।

निष्कर्ष

अगर कोई मनुष्य अपने जीवन में मुक्ति पाना चाहता है तो उसके लिए भारत के चारो धाम की यात्रा करना बेहद जरुरी है। पुराणों में ऐसा कहा गया है कि जो मनुष्य चारो धाम के दर्शन कर लेता है उसे जीवन-मरन से मुक्ति मिल जाती है। 

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मुरैना के विश्व प्रसिद्ध मंदिर (World Famous Temples in Morena) https://mychalisa.com/famous-temples-in-morena/ https://mychalisa.com/famous-temples-in-morena/#comments Wed, 08 May 2024 10:07:58 +0000 https://mychalisa.com/?p=1665 हमारे हिंदू धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा का विशेष महत्व माना गया है इसीलिए लोग मंदिर जाकर भगवान ...

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हमारे हिंदू धर्म में सभी देवी देवताओं की पूजा का विशेष महत्व माना गया है इसीलिए लोग मंदिर जाकर भगवान की पूजा आराधना करते हैं और आत्म शांति की अनुभूति प्राप्त करते हैं। कहते हैं भगवान के मंदिर जाने से मनुष्य के सभी रोग दोष हट जाते हैं। हमारे भारत में आज बहुत से ऐसे तीर्थ स्थान है जो पूजने योग्य है और वह अति प्राचीन कालीन माने जाते हैं।

वहां की धार्मिक मान्यताएं बहुत ज्यादा ही प्रसिद्ध है। आज हम आपको मध्य प्रदेश के मुरैना के विश्व प्रसिद्ध मंदिरों के बारे में जानकारी देने वाले हैं यह सभी मंदिर इंडिया में ही नहीं बल्कि विश्व में भी अपना एक अलग स्थान बनाएं रखते हैं इनको वैश्विक स्तर पर लोगों के द्वारा पसंद किया जाता है दूर-दूर से यहां लोग दर्शन के लिए आते हैं आईए जानते हैं मुरैना के विश्व प्रसिद्ध सभी मंदिरों के बारे में पूरी जानकारी.. 

1. विश्व प्रसिद्ध मुरैना शनिश्चरा मंदिर

मुरैना में स्थित शनिश्चरा मंदिर धार्मिक न्यास और धर्मस्य विभाग के नियंत्रण में आता है और यह हिंदुओं का प्रसिद्ध देवस्थान है। इस शनि मंदिर को एक धर्य पर्यटन स्थल के रूप में भी बनाया गया है। जैसा कि पिछले सालों से यहां लगातार दिन प्रतिदिन आने वाले बाहर से श्रद्धालुओं की जो संख्या है वह बढ़ती जा रही है। उन सभी आने-जाने वाले लोगों के विकास कार्य और उनकी सुविधा को देखते हुए यहां पर कई प्रकार के सुधार कार्य किए गए हैं। ऐसी मान्यता है कि इस विश्व प्रसिद्ध शनि मंदिर का निर्माण राज्य विक्रमादित्य के द्वारा किया गया था

हर साल यहां लाखों की संख्या में श्रद्धालु अलग-अलग राज्यों से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी आते हैं। मुख्य रूप से शनिवार के दिन अगर अमावस्या पड़ जाती है तो उस पर विशेष मेले का भी यहां पर बड़ा आयोजन होता है। शनिश्चरा मंदिर पहाड़ी पर स्थित है यहां पर बड़े-बड़े नहाने के कुंड, समर्पण स्थल, वस्त्र समर्पण स्थल, पीने की सुविधा, ऑडिटोरियम जैसी बहुत सी सुविधाएं आपको देखने को मिलेगी। यहां पर जाने के लिए आप बस से ट्रेन से भी जा सकते हैं

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प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ऐसा माना जाता है कि रावण के द्वारा इस शनि मंदिर को हनुमान जी ने छुड़वाया था। रावण के द्वारा इस मंदिर को लंका ले जाया गया था। इससे शनिदेव की शक्तियां खत्म हो गई थी‌। वापस से इनको स्थापित करने का कार्य हनुमान जी को दिया गया था। जो की मुरैना के इस क्षेत्र में हनुमान जी के द्वारा शनि मंदिर की स्थापना हुई थी। आज भी यहां पर शनि देव का एक गड्ढा भी मौजूद है।

2. नरेश्वर शिव मंदिर मुरैना

मुरैना का नरेश्वर शिव मंदिर अति प्राचीन शिव मंदिर में से एक है यह ग्वालियर से लगभग 70 किलोमीटर दूर मुरैना से 50 किलोमीटर दूरी पर भिंड क्षेत्र में पड़ता है यह अति प्राचीन दुर्लभ पहाड़ियों के बीच बसा हुआ बहुत प्राचीन शिव मंदिर है यहां पर भी बड़ी संख्या में भक्त लोग दर्शन करने के लिए आते हैं महाशिवरात्रि और सभी शिवरात्रि पर अधिक संख्या में लोग यहां पर पहुंचते हैं।

ऐसा बताया जाता है कि यह मंदिर गुर्जर प्रतिहार कालीन मंदिर है। जो कि तीसरी से 7वी शताब्दी के बीच में बनाया गया था।

यहां पर स्थित शिवलिंग चट्टान काट कर बनाया गया है यहाँ बारिश के दिनों में तो जब झरने बहते हैं, तालाब में जो पानी जाता है वह शिवलिंग को छूकर निकलता है। यहां तक पहुंचने के लिए पैदल यात्रा करके जाना पड़ता है, क्योंकि यह शिव मंदिर अति दुर्लभ पहाड़ियों के बीच में बसा हुआ है। लगभग 3 किलोमीटर पैदल चलने के बाद में इस मंदिर पर पहुंच सकते हैं।

3. 64  योगिनी मंदिर मुरैना

64 योगिनी मंदिर ग्वालियर मुरैना जिले के मितावली गांव में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1323 ईस्वी में किया गया था। 64 योगिनी मंदिर को महादेव मंदिर भी कहा जाता है। जिसमें भगवान एकट्टसो शिवलिंग विराजमान है। यह मंदिर 100 फीट ऊंची पहाड़ी के ऊपर बनाया गया है। गोलाकार आकृति में बना हुआ है। यह मंदिर अपनी प्राकृतिक शोभा के लिए भी जाना जाता है। इस मंदिर का आकार शिवलिंग की तरह होने की वजह से इसका नामकरण किया गया है। 

हमारे देश में गोलाकार मंदिरों की संख्या बहुत कम है इसीलिए यह मंदिर विश्व प्रसिद्ध मंदिर है क्योंकि यह गोलाकार आकृति में बना हुआ है। यहां इस ऊंचाई पर बने मंदिर में 64 कमरे बने हुए हैं। इसलिए इसको 64 योगिनी मंदिर कहा जाता है। यहां योगिनी का मंदिर प्रसिद्ध मंदिर है। भारतीय पुरातत्व सर्वे विभाग के द्वारा सन 1951 में इस मंदिर को कानून के तहत प्राचीन व ऐतिहासिक स्मारक बना दिया गया है। ऐसा कहा जाता है कि भारत की संसद भवन का निर्माण किया गया था वह इसी मंदिर से प्रेरित होकर किया गया है।

4. कनक मठ मंदिर मुरैना

कनक मठ मंदिर का निर्माण कछुआ वंश के राजा कीर्ति राज के द्वारा किया गया था। राजा कीर्ति राज की पत्नी महादेव की बड़ी भक्त थी भगवान शिव की भक्त होने की वजह से कनक मठ मंदिर नाम रखा गया। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण कार्य एक रात में भूतों के द्वारा किया गया था। इस मंदिर में मौजूद सभी मूर्तियां अति प्राचीन है। कई बार आक्रमण कार्यों के हमले की वजह से कुछ मूर्तियां खंडित हो चुकी है।

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जिनके अवशेष ग्वालियर म्यूजियम में भी आपको देखने को मिल सकते हैं। यहां चबूतरे पर मंदिर वास्तु योजना, गर्भ ग्रह, स्तंभ युक्त मंडल आकर्षक मुखमंडल अपनी आकर्षक शोभा लिए हुए हैं। जिसकी वजह से यहां पर देश-विदेश से हजारों लाखों संख्या में श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं। मंदिर की स्थिति जर्जर होने के बाद भी शिव मंदिर के दर्शन करने के लिए अनेक भक्त आते हैं।

5. बटेश्वर मंदिर मुरैना

भारत में आपको हर राज्य में अति प्राचीन शिव मंदिर देखने को मिल जाएंगे लेकिन मध्य प्रदेश के मुरैना में आज एक ऐसा शिव मंदिर है जिसमे एक शिव मंदिर नहीं बल्कि सैकड़ो शिव मंदिर आपको देखने को मिलेंगे यह शिव मंदिर आठवीं शताब्दी में बनाया गया था। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर को कई बार डाकुओं के द्वारा नष्ट भी कर दिया गया लेकिन फिर से इस मंदिर का निर्माण किया गया। इस मंदिर को डाकुओं ने अपना खुद का घर बना लिया था। लेकिन धीरे-धीरे यह मंदिर खंडहर में बदलता गया।

बटकेश्वर मंदिर मुरैना के 25 किलोमीटर दूर बिहार में स्थित है। इस मंदिर को आठवीं से दसवीं शताब्दी में गुर्जर और प्रतिहार वंश के द्वारा बनाया गया। यहां 200 से अधिक मंदिर है। जो भगवान शिव और विष्णु को ध्यान में रखते हुए बनाए गए थे।

 300 साल पहले यहां पर डाकुओं का बड़ा आतंक हुआ करता था। लेकिन उन मंदिरों को बनवाने के लिए डाकुओं ने सहयोग भी पूरा किया था। आज यह सभी मंदिर भारतीय पर्यटन के अधीन आ चुके हैं और टूरिस्ट के लिए भी यह अच्छी जगह बन गए हैं। यहां पर देश के ही नहीं बल्कि विदेश के भी श्रद्धालु दर्शन करने के लिए आते हैं। 

6. कुंडलपुर मंदिर

कुंडलपुर मंदिर मुरैना में इसको सूर्य मंदिर के नाम से भी जानते हैं ऐसा माना जाता है कि यह मंदिर माता कुंती के पुत्र करण के जन्म स्थान पर बना हुआ है यहां पर पास में बहती आसन नदी में माता कुंती ने कर्ण को बहा दिया था। यहां पास में ही शंकर भगवान का मंदिर है जब कर्ण का जन्म हुआ था। उस समय से यह शिव मंदिर बनाया गया है।

समय जैसे-जैसे बढ़ता गया इस शिवलिंग का भी यहां आकर बढ़ता जा रहा है। यह मंदिर भी विश्व प्रसिद्ध मंदिर की गिनती में आता है। यह शिव मंदिर अति प्राचीन है और यहां भी देश से ही बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं।

निष्कर्ष

मुरैना के विश्व प्रसिद्ध मंदिर (World Famous Temples in Morena) भक्तो के बीच हमेशा से ही घुमने और दर्शन करने के केंद्र बने रहते है। तो अगर आपने अभी तक इनके दर्शन नहीं किए है तो एक बार अपने जीवन में मुरैना के सभी प्रसिद्ध मंदिर के दर्शन जरुर करे। Follow MyChalisa.com for more!

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Everything About नोयडा इस्कॉन मंदिर | Noida ISKCON Temple https://mychalisa.com/noida-iskcon-temple/ https://mychalisa.com/noida-iskcon-temple/#comments Fri, 12 Jan 2024 09:49:13 +0000 https://mychalisa.com/?p=1554 भगवान श्री कृष्ण की पूजा आराधना उपासना के लिए आप दुनिया भर में भारत की भूमि पर कई विशेष प्रकार ...

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भगवान श्री कृष्ण की पूजा आराधना उपासना के लिए आप दुनिया भर में भारत की भूमि पर कई विशेष प्रकार के मंदिर देख सकते हैं। आपको बहुत से ऐसे मंदिर संस्था मिल जाएंगे जो भगवान श्री कृष्ण की भक्ति और भागवत गीता के सुंदर उपदेश के लिए जाने जाते हैं। भगवत गीता भगवान श्री कृष्ण से ही प्रेषित है। और यह हिंदुओं का सबसे बड़ा ग्रंथ भी है भगवत गीता के संदेश को दुनिया भर में पहुँचाने का काम किया जा रहा है। यह संदेश जिस संस्था के द्वारा पहुंचाया जा रहा है उसका नाम इस्कॉन संस्था है। इस्कॉन का पूरा नाम इंटरनेशनल सोसाइटी कृष्ण कॉन्शियस है। इस्कॉन पूरे देश दुनिया में आपको 1000 से ज्यादा केंद्र मिल जाएंगे। भारत एकमात्र ऐसा देश है जिसमें 400 इस्कॉन मंदिर आप देख सकते हैं। क्या आप जानते हैं कि इस्कॉन की शुरुआत कैसे हुई, इसकी स्थापना सबसे पहले कहां हुई थी। बहुत से ऐसे सवाल है जिनके बारे में आपको जानना बहुत जरूरी है। आईए जानते हैं नोयडा इस्कॉन मंदिर से जुड़े हुए पूरे इतिहास के बारे में और नोएडा इस्कॉन मंदिर की पूरी जानकारी..

श्री कृष्णा और राधा के प्रेम का प्रतीक ISKON

नोयडा इस्कॉन मंदिर में हिंदुओं का बहुत पवित्र आकर्षित वैष्णो मंदिर है। यह मंदिर भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी के प्रेम का प्रतीक है और उन्हीं को ही यह मंदिर समर्पित है। नोएडा इस्कॉन मंदिर अगर आप घूमना चाहते हैं तो यह अग्रसेन मार्ग सेक्टर 33 उत्तर प्रदेश में आपको मिल जाएगा। यहां आकर आप इस मंदिर परिसर को देख सकते हैं मंदिर की पूरी देखरेख का काम इस्कॉन मंदिर की संस्था के द्वारा होता है। आप अगर इस्कॉन मंदिर में घूमने आते हैं तो यहां भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी की अद्भुत अलौकिक सुंदर मूर्तियां आपको देखने को मिलेंगी।

ये भी पढ़ें > काशी विश्‍वनाथ मंदिर बनारस का इतिहास

 यहां इस मंदिर की शुरुआत भगवान श्री कृष्ण से की गई है। गीता का सुंदर उपदेश भी आप देख सकते हैं। उसकी एक सुंदर प्रति मूर्ति बनाई गई है जो कि इस मंदिर को बहुत ही खास और विशेष स्थान दिलाती है। आईए जानते हैं नोएडा इस्कॉन मंदिर की पूरे इतिहास के बारे में इस छोटे से ब्लॉग में पूरी जानकारी..

नोएडा इस्कॉन मंदिर बनावट

नोयडा इस्कॉन मंदिर एक छोटे से भूखंड पर बना हुआ विशेष प्रकार का मंदिर है। इस मंदिर में विशिष्ट तत्वों का समायोजन किया गया है उसके ऊपर सिद्ध मंदिर बनाया गया है। यह इस्कॉन मंदिर साथ मंजिल का बनाया गया है मंदिर के शिकार की ऊंचाई लगभग 160 फुट की है मंदिर में एक बड़ा मंदिर का कक्ष बनाया गया है इसके अलावा यहां एक सभागार, एक गेस्ट हाउस, रेस्टोरेंट, शादी, जन्मदिन का प्रोग्राम, करने के लिए एक बड़ा हॉल, एजुकेशन के लिए हाल, एक आवश्यक विंग, रसोई घर, बेडरूम इत्यादि सुख सुविधा दी गई है। मंदिर परिसर के बाहर आप दुकान कार्यालय हाल सभी का प्रयोग कर सकते हैं।

इस्कॉन मंदिर की पूजा का विधान

इस्कॉन मंदिर में पूजा-पाठ बड़े विधि विधान के साथ किया जाता है। यहां पर आध्यात्मिक नियमों के अनुसार पूरे पूजा पाठ के प्रोग्राम को देखने के लिए प्रशिक्षित पुजारी रखे गए हैं। जो अपने आध्यात्मिक नियमों के अनुसार दिन प्रतिदिन उनकी पूजा आराधना आरती का काम करते हैं। नोएडा इस्कॉन मंदिर की खास बात यह भी है कि यहां प्रतिदिन 6 आरतियों से भगवान की आराधना की जाती है। उन सभी आरतीयो में मंगल आरती, धूप आरती, राजभोग आरती, संध्या आरती और अंत में शयन आरती की जाती है। इस्कॉन मंदिर में मुख्य मनाने जाने वाले पर्व में से जन्माष्टमी, रामनवमी, गौरी पूर्णिमा, राधा अष्टमी और गोवर्धन जैसे प्रमुख त्योहार इस मंदिर में बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं।

स्थापना

इस्कॉन मंदिर की स्थापना पूरे भारतवर्ष में जगह-जगह हो रही है। सबसे पहले इस्कॉन मंदिर के संस्थापक स्वामी प्रभुपाद वृंदावन चले गए। वहां वह 16 साल रहने के बाद में अमेरिका चले गए। सन 1966 में उन्होंने मुख्य रूप से पहली बार इस्कॉन ट्रस्ट की स्थापना की। इस्कॉन की स्थापना अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में की गई थी।

मुख्य रूप से देखा जाए तो यह इस्कॉन मंदिर अमेरिका के लोगों से जुड़ा हुआ है। अमेरिका में एक ऐसा समाज जिसको बहिष्कृत कर दिया गया है। उस समाज को हैप्पी कहा जाता है। इस्कॉन मंदिर के माध्यम से लोगों को भागवत गीता के उपदेश अर्थ को समझाया जाता है।  आज इस्कॉन मंदिर देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी मौजूद है लाखों की संख्या में इस्कॉन संस्था के अनुयाई आप देख सकते हैं।

नोएडा इस्कॉन मंदिर की खास रोचक बातें

नोएडा में स्थित इस्कॉन मंदिर भक्ति शांति और स्थापत्य भव्यता का एक बहुत ही अद्भुत नमूना माना जाता है। मंदिर परिसर में खास तरह की नाका से राज्य से गुंबद सुंदर बाग बगीचों का निर्माण किया गया है। जो इसकी शोभा को बढ़ाते हैं। यहां जाने के बाद एकदम शांत वातावरण का अनुभव होता है। जो हर व्यक्ति को आंतरिक शांति और सांत्वना दिलाने में बहुत अच्छा होता है। नोएडा के इस्कॉन मंदिर का सबसे बड़ा आकर्षण का केंद्र महाकाल राज्यसी हाल है। यह हॉल राजा महाराजाओं के दरबार हॉल के रूप में जाना जाता है। इस हाल के अंदर भगवान श्री कृष्ण की सभी लीलाओं को दर्शाया गया है। जिन लीलाओं का वर्णन किया गया है। वह सभी सुंदर भित्ति चित्र और सुंदर चित्रों के द्वारा बनाई गई है। हाल में यह सभी चित्रकार हर व्यक्ति को मंत्र मुक्त करने के लिए बनाई गई है। यहां जटिल नक्काशेदार लकड़ी की छत और संगमरमर का पत्थर, बेहद आकर्षक अलंकृत झूमर इस मंदिर की सुंदरता और भव्यता को जोड़े रखना का काम करता है।

समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व का परिचय इस्कॉन

नोएडा में स्थित इस्कॉन मंदिर को आप इसको एक मंदिर नहीं कह सकते बल्कि यह भारत के सभी मंदिरों में से एक समृद्ध विरासत और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाने का सुंदर प्रतीक माना गया है। इस मंदिर को मुख्य रूप से भगवान श्री कृष्णा और राधा रानी के रूप को समर्पित किया गया है। पौराणिक धार्मिक ग्रंथो में भगवान श्री कृष्ण के प्रेम वात्सल्य, करुणा भक्ति के प्रतीक के रूप में यहां सभी मूर्तियां प्रतिष्ठित की गई है। मुख्य रूप से भागवत गीता की शिक्षाओं के आधार पर यहां हर नियम का पालन किया जाता है। भगवत गीता एक धार्मिक हिंदुओं का प्रतिष्ठित ग्रंथ माना गया है।

निष्कर्ष:

नोएडा इस्कॉन मंदिर बहुत ही भव्य और सुंदर बनाया गया है। अगर आप भगवान श्री कृष्ण के मंदिर घूमना चाहते है तो इससे अच्छा विकल्प कोई नही हो सकता है। आप इस मंदिर में न केवल घूम सकते है बल्कि यहाँ पर रहने, खाने का भी अच्छा ख़ासा इंतजाम किया गया है।और पढ़ने के लिए MyChalisa.com को फॉलो करें।

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सूर्य मंदिर ग्वालियर | इतिहास, दर्शन और सम्पूर्ण विवरण https://mychalisa.com/%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%b0/ https://mychalisa.com/%e0%a4%b8%e0%a5%82%e0%a4%b0%e0%a5%8d%e0%a4%af-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0-%e0%a4%97%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%be%e0%a4%b2%e0%a4%bf%e0%a4%af%e0%a4%b0/#respond Fri, 15 Dec 2023 09:38:23 +0000 https://mychalisa.com/?p=1548 सूर्य मंदिर का नाम सुनते ही दिमाग में एक नाम आता है उड़ीसा का कोणार्क मंदिर, लेकिन आपको बता दे ...

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सूर्य मंदिर का नाम सुनते ही दिमाग में एक नाम आता है उड़ीसा का कोणार्क मंदिर, लेकिन आपको बता दे कि उड़ीसा के अलावा भी ग्वालियर में अति प्राचीन सूर्य मंदिर है। इसका निर्माण वसंत कुमार बिरला के द्वारा 20वीं सदी में करवाया गया था।  यह 20वीं सदी का एकमात्र सूर्य मंदिर है, जो कि ग्वालियर मध्य प्रदेश में आता है। 

बिरला परिवार की स्थापना की वजह से अन्य बिरला मंदिरों के कारण ग्वालियर के इस मंदिर का नाम बिरला मंदिर और बिरला सूर्य मंदिर भी रखा गया है। अर्थात इन नाम से भी आप इसको जान सकते हैं। अन्य सभी बिरला मंदिर पूरे देश में आप देख सकते हैं जो कि अपनी अद्भुत शैली अत्यधिक हरियाली बड़े-बड़े बगीचों की वजह से जाने जाते हैं ।आईए जानते हैं ग्वालियर सूर्य मंदिर के बारे में उसका इतिहास उससे जुड़ी हुई सभी महत्वपूर्ण जानकारियां.

ग्वालियर सूर्य मंदिर का स्वरूप

ग्वालियर में स्थित सूर्य मंदिर के स्वरूप की अगर बात की जाए तो यह मंदिर भगवान सूर्य के रथ के आकार का बना हुआ है। यहां पर एक बड़े से चबूतरे के ऊपर 24 चक्र और सात घोड़े का रथ विराजमान है, जो कि गर्भ ग्रह और मुख्य हाल पर बनाया गया है। रथ के अंदर साल के 24 पखवाड़े, दिन रात के 8-8 सप्ताह के सभी दिन इसके प्रतीक माने जाते हैं। इस प्रकार की आकृति में इस सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया है।

सूर्य मंदिर के निर्माण का इतिहास

ग्वालियर सूर्य मंदिर का निर्माण बसंत कुमार जी बिरला ने 20वीं सदी में करवाया था। इस मंदिर के शिलान्यास का प्रोग्राम सन 1984 में तथा प्राण प्रतिष्ठा 23 जनवरी को हुई थी ।इस मंदिर की चौड़ाई की बात की जाए तो यह 20500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। मंदिर की ऊंचाई क्षेत्र फिट 1 इंच की रखी गई है। पूर्ण रूप से यह मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर के तरह ही बनाया गया है। जो कि वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण लगता है। यह मंदिर आधुनिक युग का एकमात्र ऐसा अद्भुत सूर्य मंदिर है जो वस्तु सिर्फ का भी गौरव माना जाता है।

ग्वालियर का सूर्य मंदिर अगर आप देखने जाते हैं तो उसको देखते ही उड़ीसा के कोणार्क मंदिर की छवि दिमाग में याद आती है। उड़ीसा का कोणार्क मंदिर जिस तरह से उल्टे कमल की शैली पर बनाया गया है। उसी प्रकार से इस मंदिर को भी रथ की आकृति पर सूर्य के समान बनाया गया है। कोणार्क मंदिर की तरह ही सूर्य मंदिर में भी भगवान सूर्य के सप्ताह दिन के प्रतीक साथ घोड़े पर सवार किए गए हैं। इस रथ पर साल के 12 महीना के साथ-साथ कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष के प्रतीक शैया की दोनों साइड बनाए गए हैं। 

हर पहिए में आठ बड़े आठ छोटे और लगाए गए हैं जो रात और दिन के आठ पैर का प्रतीक माना जाता है। गर्भ ग्रह में भगवान सूर्य की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में खिड़कियां इस तरीके से बनाई गई है कि सूर्य की पहली किरण संध्या काल की आखिरी किरण भगवान सूर्य की प्रतिमा को रोशन करती रहे इस तरह से इस मंदिर को बनाया गया है।

सुबह से शाम होती है आरती

प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को पालन करते हुए यहां पर सूर्य भगवान की नित्य प्रतिदिन सूर्य उपासना होती आ रही है। जिसमें से भगवान की आरती भी मंदिर में सूर्योदय और सूर्यास्त पर होती है। मंदिर की आरती की अगर बात की जाए तो ढोल नगाड़ों की ताल पर पुजारी और श्रद्धालु आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करते हुए भगवान सूर्य नारायण की आरती गाते हैं। मंदिर के वास्तु की वजह से ही यहां नगाड़ा और गायन के साथ में आध्यात्मिक वातावरण महसूस होता है।

सूर्य मंदिर का गर्भ ग्रह

सूर्य मंदिर के गर्भ ग्रह में सात घोड़े के रथ के समान यहां एक संगमरमर का बड़ा चबूतरा बनाया गया है चबूतरो के सामने सात घोड़े बनाए गए हैं जिनका राशि सारथी के हाथ में है चबूतरे पर ऊंचे आसन पर भगवान सूर्य की मूर्ति विराजमान है।

 पद्मासन में भगवान सूर्य कुंडल एकवाली, हर कोंकण, नूपुर, मेखला, धोती, रघुपति धारण किए हुए हैं। भगवान सूर्य चतुर्भुज देवता के समान दिखाई दे रहे हैं। उनकी दो उठी हुई भुज में कमल पुष्प त्रिशूल और माला भी दिखाई देती है।

भगवान सूर्य की प्रतिमा पौराणिक हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश के समान दिखाई देती है। कमल पुष्प के समान सूर्य और विष्णु , त्रिशूल शिव के, माला ब्रह्मा के प्रतीक माने गए हैं।

गर्भ ग्रह के अंदर सूर्य की रोशनी निरंतर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पड़े इसके लिए शिखर के चारों तरफ सुरंग बनाई गई है जिससे कि सूर्य की रोशनी भगवान की मूर्ति पर पड़ती रहे उस मूर्ति की चमक ज्यादा दिखाई देती है।

मंदिर में वास्तु कला का इस तरीके से कारीगरी की गई है दिन के बीच में सूर्य की किरण गर्भ ग्रह में स्थित भगवान सूर्य की मूर्ति पर सीधी पड़ती है जो उसके स्वर्ण मुकुट को पूरी तरह से चमकती है सदैव प्रकाशित करती रहती हैं।

सूर्य मंदिर का मंडप व अन्य मूर्ति

सूर्य मंदिर ग्वालियर में मंदिर की पूर्व दिशा में दाई और बाई तरफ दो बड़ी आकार की छतरियां विराजमान है जिनमें घनश्याम दास जी बिरला और उनकी पत्नी महादेवी बिरला की काशी की मूर्तियां भगवान को प्रणाम करते हुए बनाई गई है जिससे मंदिर की शोभा और बढ़ रही है मंदिर में एक बड़ा हाल और तीन द्वारा बनाए गए हैं हरिद्वार पर चार-चार स्तंभ लगाए गए हैं उन सभी स्तंभों पर नवग्रह की मूर्तियां स्थापित की गई है। हर द्वार पर आपको चतुर्भुज जी गणेश जी की मूर्ति भी विराजमान दिखाई देगी। 

मंदिर में देखा जाए तो कल 373 मूर्तियां विराजमान है। मंदिर की दीवारों पर भी खास तरह की चित्रकारी की गई है। जिनमें द्वादश सूर्य के अवतार दशावतार ब्रह्मा विष्णु नारद नवदुर्गा चारों दिशाओं में नृत्य मुद्रा में बाद बजाती हुई मुद्रा में नारी की मूर्ति भी बनाई गई है। हम उम्मीद करते है My Chalisa का हमारा ये लेख आपकी सभी जिज्ञासा को पूरी करेगा. धन्यवाद!!!

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काशी विश्‍वनाथ मंदिर बनारस का इतिहास https://mychalisa.com/%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/ https://mychalisa.com/%e0%a4%95%e0%a4%be%e0%a4%b6%e0%a5%80-%e0%a4%b5%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b5%e0%a4%a8%e0%a4%be%e0%a4%a5-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/#comments Fri, 01 Dec 2023 08:29:03 +0000 https://mychalisa.com/?p=1545 काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह 12 ज्योतिर्लिंगों ...

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काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है ।काशी को भगवान भोलेनाथ और काल भैरव की नगरी भी कहा जाता है या यूं कहे कि यह भगवान शिव की एक अद्भुत नगरी है जिसमें भगवान खुद विराजमान होते हैं काशी को सप्तपूरियों के अंतर्गत भी शामिल किया गया है काशी नगरी को बनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है काशी के अंदर दो नदियों का संगम क्रमशः वरुण और 80 के बीच बसे होने की वजह से इसको वाराणसी भी कहा जाता है आईए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।

शिव के त्रिशूल पर विराजमान है काशी

मान्यताओं की अगर बात की जाए तो काशी नगरी गंगा किनारे बसी होने की वजह से भगवान शिव की त्रिशूल की नोक पर पूरी काशी नगरी बसी हुई है 12 ज्योतिर्लिंग में से एक सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ यहां काशी बनारस में विराजमान है पतित पाहिनी भागीरथी गंगा तट पर धनुष कारी काशी नगरी पाप नाशिनी नगरी के रूप में विख्यात है भगवान शिव को काशी बहुत ज्यादा प्रिय है इसी वजह से इसका नाम काशीनाथ ही रखा गया है।

भगवान श्री हरि विष्णु की नगरी

शास्त्रों के अनुसार काशी को भगवान श्री हरि विष्णु की पूरी भी माना गया है या यू कहे कि पहले यह भगवान शिव की नहीं विष्णु भगवान की पूरी कहलाती थी। यहां पर भगवान श्री हरि विष्णु के आनंद अश्रु गिरे थे। जिससे एक सरोवर प्रकट हो गया। वहां पर भगवान श्री हरि विष्णु बिंदु माधव के नाम से विराजमान हो गए। महादेव को भी भगवान विष्णु की वजह से यह काशी नगरी बहुत प्रिय थी। इसकी वजह से भगवान विष्णु से शिव ने अपने आवास स्वरूप काशी नगरी को वरदान में मांग लिया। तब से लेकर काशी नगरी में भगवान शिव का स्थान बन गया। काशी नगरी हिंदुओं का सबसे बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। 

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विनाश कर दिया यहां के सभी मंदिरों का

चीनी यात्री ह्वेनसांग में बताया गया है कि उनके समय में काशी विश्वनाथ में लगभग 100 मंदिर थे लेकिन सभी मुस्लिम शासको ने यहां के सभी मंदिरों को जड़ से खत्म करके उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया। 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने वापस से काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। उसके बाद में सम्राट विक्रमादित्य ने भी इसका जीर्णोद्धार करवाया था। वापस से मोहम्मद गौरी ने सन 1194 में इस मंदिर को लूटने के बाद में खत्म कर दिया।

1585 ईस्वी में राजा टोडरमल ने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया। उसके बाद इस भव्य मंदिर को सन 1632 ईस्वी में शाहजहां के आदेश पर तोड़ने के आदेश दे दिए गए लेकिन हिंदुओं के विरोध की वजह से इस मंदिर को शाहजहां की सेवा हाथ तक नहीं लगा सकी। काशी के अंदर अन्य लगभग 63 मंदिर मुस्लिम आक्रमण कार्यों के द्वारा तोड़ दिए गए थे। डॉक्टर एसएस भट्ट के द्वारा उनकी किताब में भी इन सभी का वर्णन किया गया है। 18 अप्रैल 1659 को औरंगजेब ने भी एक आदेश जारी किया। जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के आदेश दिए गए। औरंगजेब के द्वारा लिखित फरमान को आज भी कोलकाता लाइब्रेरी में सुरक्षित रखा गया है। उस समय उनके ने लिखित पुस्तक मसीदे आलमगीर में इसका वर्णन किया हैं। मंदिर को तोड़कर औरंगजेब के समय में ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था।

काल भैरव है काशी के कप्तान

काशी के कप्तान काल भैरव माने जाते हैं। भगवान शिव और पार्वती के वचन अनुसार इनका वहां का कप्तान बनाया गया है। हिंदू देवताओं में भी भैरव बाबा का बहुत महत्व है। इसी वजह से काशी में इनको कोतवाल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद अगर काल भैरव के दर्शन नहीं किए तो भगवान भोलेनाथ के दर्शन का महत्व नहीं होता है। इसीलिए लोग काल भैरव के दर्शन करने के लिए भी जाते हैं। भगवान शिव के रुधिर से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। भगवान के रुधिर के दो भाग हो गए थे जिनमें से पहले बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव के रूप में बन गया। दोनों की हमारे धर्म शास्त्रों में पूजा का विशेष उल्लेख बताया गया है और उनकी पूजा का बहुत प्रबल महत्व भी माना जाता है।

मोक्ष की नगरी है काशी

काशी बनारस को मोक्ष नगरी कहा जाता है कहते हैं काशी में जिस व्यक्ति की अगर मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति को खुद महादेव मुक्तिदायक तारक मंत्र देने के लिए आते हैं आज भी यहां पर बहुत से लोग जो अपने अंतिम समय में चल रहे हैं वह अपना अंतिम सांस या प्राण त्यागने के लिए काशी में ही आते हैं काशी में इसके लिए उचित व्यवस्था भी की गई है शास्त्रों के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसकी अस्थियां गंगा में विसर्जित की जाती है जो काशी में मुख्य रूप से की जाती है काशी को मोक्ष दाहिनी नगरी भी माना जाता है।

बनारसी पान और बनारसी साड़ी के लिए प्रसिद्ध है काशी

काशी विश्वनाथ को बनारस कहा जाता है आप सभी जानते हैं कि काशी यानी बनारस में बनारस का पान और बनारसी सिल्क की साड़ी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। इनको विश्व प्रसिद्ध भी कहा जाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय का नाम तो आपने सुने होगा जो कि भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां के लोग बड़े दिलचस्प किस्म के हैं। जिनको बनारसी बाबू कहा जाता है। इनका व्यवहार बहुत ही सरल और मीठा ज्ञानवर्धक होता है। यहां के लोग दिमाग से बहुत तेज होते हैं। आप सभी ने देखा ही होगा कि बड़े से बड़े नेता अभिनेता गायक संगीतकार, गीतकार नृत्य कार और कलाकार आपके यहां नगरी में देखने को मिल जाएंगे

उत्तरकाशी भी है काशी 

उत्तरकाशी के नाम को जाना जाता है उत्तरकाशी को छोटा काशी भी कहते हैं। उत्तरकाशी ऋषिकेश जिले में मुख्य केंद्र है। इसका एक भाग गढ़वाल राज्य का हिस्सा भी है। उत्तरकाशी सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान वाला शहर है। उत्तरकाशी की भूमि साधु संतों और आध्यात्मिक अनुभूति तपस्या स्थली मानी जाती है। दुनिया भर से लोग यहां इस भूमि पर वैदिक भाषा को सीखने के लिए आते हैं। महाभारत में एक महान साधु ने इस भूमि पर घोर तपस्या की थी। स्कंद पुराण के केदार खंड में भी आप उत्तरकाशी का वर्णन कर सकते हैं। जिसमें भागीरथी, जाह्नवी, भील गंगा इन सभी के बारे में भी बताया गया है

अहिल्याबाई होलकर के सपने में आए थे शिव

आप सभी जानते ही है कि रानी अहिल्याबाई होल्कर बहुत बड़ी शिव भक्त की और इस मंदिर के निर्माण में उनका बहुत बड़ा योगदान है ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव रानी अहिल्याबाई के सपने में आए थे और फिर रानी अहिल्याबाई ने इस मंदिर का वापस से निर्माण करवा कर काशी की महिमा को बढ़ाने का काम किया। इंदौर के महाराज रणजीत सिंह ने भी सोने के खाबो का निर्माण करवा कर बहुत बड़ा योगदान करवाया था। 

निष्कर्ष

तो दोस्तों, ये थी काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी।  अगर आप भी काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करना चाहते है तो आप भी वहाँ पर जरुर जाएँ।  हर व्यक्ति अपने जीवन में एकबार काशी विश्वनाथ मंदिर जरुर जाना चाहता है।  आशा करते है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी।  और रोचक जानकारी लेने के लिए हमारी वेबसाइट के साथ जुड़े रहे। MyChalisa.com से जुड़ें इस तरह की और जानकारी के लिए।

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माता वैष्णो देवी मंदिर, कथा और मान्यता https://mychalisa.com/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a5%8b-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/ https://mychalisa.com/%e0%a4%b5%e0%a5%88%e0%a4%b7%e0%a5%8d%e0%a4%a3%e0%a5%8b-%e0%a4%a6%e0%a5%87%e0%a4%b5%e0%a5%80-%e0%a4%ae%e0%a4%82%e0%a4%a6%e0%a4%bf%e0%a4%b0/#comments Thu, 09 Nov 2023 05:55:35 +0000 https://mychalisa.com/?p=1541 माता वैष्णो देवी मंदिर देश के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। यह जम्मू में कटरा से करीब 14 ...

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माता वैष्णो देवी मंदिर देश के पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। यह जम्मू में कटरा से करीब 14 किलोमीटर की दूरी पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित है।हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस मंदिर को माता रानी और वैष्णवी के नाम से जानते हैं। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने आते हैं। यहां की मान्यता है कि मां वैष्णो देवी के दर्शन से भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। माता रानी का आशीर्वाद पाने के लिए भक्त अपने अनुसार नंगे पैर भवन तक की चढ़ाई करते हैं। चलिए जानते हैं माता रानी की कथा और मान्यताओं के बारे में…

माता वैष्णो देवी कथा

वैष्णो देवी मंदिर पहाड़ की एक चोटी पर बना हुआ हैं। बताया जाता हैं, कि इस मंदिर का निर्माण 700 साल पहले पंडित श्रीधर ने कराया था। पंडित श्रीधर माता रानी के बहुत बड़े भक्त थे। इसी वजह से एक दिन माता उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उनके सपने में आई और बोली हे भक्त तुम माता वैष्णो के निमित्त एक भंडारा करो, कहकर माता अंतर्ध्यान हो गई, इसके बाद अगली सुबह पंडित श्रीधर ने इस सपने की बात अपने परिवार वालों को बताई और फिर भंडारे का आयोजन किया।

पंडित श्रीधर बहुत ही गरीब थे। इसलिए वह भंडारे में आए भक्तों की भीड़ को देखकर चिंतित हो गये, बताया जाता है कि उनके इस भंडारे में एक बालिका शामिल थी। जो भक्तों को प्रसाद बांट रही थी वहीं जब किसी भक्त ने बालिका से उसका नाम पूछा तो बालिका ने अपना नाम वैष्णवी बताया, जब तक भंडारा चला वैष्णवी वहां मौजूद रही और फिर अंतर्ध्यान हो गई। जब श्रीधर को वैष्णवी के बारे में पता चला, तो पंडित श्रीधर वैष्णवी से मिलने को व्याकुल हो उठे।  उन्होंने भक्तों से बालिका के बारे में पूछा कि वो बालिका कहां गई?

लेकिन कोई भी  पंडित श्रीधर को वैष्णवी की जानकारी नही दे पाया। पंडित जी बालिका को ढूंढते रहे, लेकिन वह उन्हें कही नहीं मिली। फिर एक रात पंडित जी के सपने में आकर उस बालिका वैष्णवी ने बताया कि वो माता वैष्णवी हैं।  माता ने उन्हें चित्रकूट पर्वत पर स्थित गुफा के बारे में बताया, फिर पंडित श्रीधर ने गुफा ढूंढ कर माता वैष्णो की पूरी विधि विधान से पूजा अर्चना की। उस वक्त से माता वैष्णो देवी की पूजा आज तक जारी है। बता दे कि आज के वक्त में यही गुफा माता वैष्णो देवी का मंदिर कहलाता है।

माता वैष्णो देवी मंदिर तक कैसे पहुंचे?

माता रानी तक पहुंचने के लिए आपको जम्मू से कटरा शहर तक 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। हालांकि जो लोग पैदल यात्रा में असमर्थ है उनके लिए हेलीपैड भी उपलब्ध है। माता वैष्णो देवी गुफाओं और भैरव घाटी के बीच एक रोपवे  का निर्माण किया गया है। जिससे आप आसानी से भैरवनाथ के दर्शन कर सकते हैं।

अर्धकुमारी मंदिर की मान्यता

अर्धकुमारी मंदिर को गर्भ गुफा के नाम से भी जाना जाता है। इस गुफा को लेकर मान्यता है। कि यहां माता वैष्णो देवी ने पूरे 9 माह तक तपस्या की थी। कहा जाता है कि जो भी भक्त इस गुफा के दर्शन करता है उसे मृत्यु और जीवन के चक्र से मुक्ति मिल जाती हैं। गर्भ गुफा का आकार दिखने में बहुत छोटा हैं लेकिन हर प्रकार का इंसान यहां से आसानी से निकल जाता है। बस उसके मन और दिल में माता रानी की भक्ति हो और किसी के लिए कोई गलत भावना ना हो।

किस रूप में है माता रानी

त्रिकुटा की पहाड़ियों पर स्थित एक गुफा में माता वैष्णो देवी की तीन मूर्तियां हैं। जिसमे पहली मूर्ति काली देवी, दूसरी सरस्वती देवी, और तीसरी लक्ष्मी देवी पिंडी के रूप में गुफा में विराजित है। इन तीनों पिंडियों के रूप को वैष्णो देवी कहा जाता हैं। पवित्र गुफा की लंबाई 98 फिट हैं। इस गुफा में एक बड़ा स्थान बना हुआ हैं। इस स्थान पर माता का आसन है। जहां देवी त्रिकुटा अपनी माता के साथ विराजमान रहती हैं। 

माता रानी ने भैरवनाथ का वध क्यों किया

बताया जाता है कि भैरवनाथ ने कन्या रूपी मां का हाथ पकड़ लिया, लेकिन माता ने अपना हाथ भैरव के हाथ से छुड़ाया, और त्रिकूट पर्वत की ओर चल पड़ी। भैरव उनका पीछा करते हुए उसी स्थान पर आ गया। वहां भैरव का सामना हनुमान जी से हुआ। हनुमान जी ने भैरव को रोकने की कोशिश की,  भैरव नहीं माना, फिर भैरव का युद्ध श्री हनुमान जी से विर लंगूर रूप में हुआ, जब हनुमान जी युद्ध में पस्त होते दिखे, 0तब माता वैष्णो ने महाकाली के रूप में भैरव का वध किया।

भवन और भैरवनाथ मंदिर की दूरी

भवन वह स्थान हैं जहां माता ने भैरवनाथ का वध किया था। प्राचीन गुफा के सक्षम भैरव का शरीर मौजूद है।और उसका सर उड़कर 3 किलोमीटर दूर भैरव घाटी में चला गया और शरीर यहां रह गया। जिस स्थान पर सर गिरा आज उस स्थान को भैरवनाथ के मंदिर के नाम से जाना जाता हैं। कटरा से ही वैष्णो देवी की पैदल चढ़ाई शुरू होती है। जो भवन तक करीब 13 किलोमीटर और भैरव मंदिर तक 14.5 किलोमीटर हैं। मान्यता है कि माता रानी के दर्शन के बाद भैरवनाथ के दर्शन के बिना यात्रा अधूरी मानी जाती हैं।

कब हुआ मंदिर का निर्माण

बताया जाता हैं, कि वैष्णो देवी मंदिर का निर्माण 700 साल पहले एक ब्राह्मण पुजारी पंडित श्रीधर द्वारा कराया गया था माता रानी सबसे पहले श्रीधर को उनके सपने में दिखी थी। कटरा से लगभग मंदिर की ऊंचाई 5200 फीट पर हैं, जो 12 किलोमीटर की दूरी हैं यहां हर साल लाखों श्रद्धालु माता रानी के दर्शन करने के लिए आते हैं।

क्या है इसकी मान्यता

हिंदू मान्यता के अनुसार वैष्णो देवी मंदिर शक्ति को समर्पित पवित्रम हिंदू मंदिरों में से एक हैं। इस धार्मिक स्थान को माता रानी और वैष्णवी के नाम से भी जाना जाता हैं।‌ यहां माता के दर्शन के लिए हर दिन देश-विदेश से बड़ी मात्रा में लोग आते हैं। गर्मियों में यहां श्रद्धालुओं की संख्या काफी बढ़ जाती हैं। नवरात्रि के टाइम यहां बहुत भारी भीड़ देखी जाती हैं।

माता वैष्णो देवी के दर्शन के लिए ऑनलाइन बुकिंग

ऑनलाइन बुकिंग करने के लिए श्रद्धालुओं को श्री माता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड की आधिकारिक वेबसाइट पर जाकर श्रद्धालु के तौर पर खुद को रजिस्टर करना होगा। साथ ही यूजर आईडी और पासवर्ड बनाना होगा। अगर आप पहले से ही रजिस्टर हैं, तो आप अपने यूजर नेम और पासवर्ड से लॉगिन करें। ऑनलाइन यात्रा निशुल्क हैं। अगर आप अपना रजिस्ट्रेशन अपने फोन के द्वारा खुद ही पहले से कर लेते हैं, तो वहां आपको ज्यादा फॉर्मेलिटी की जरूरत नहीं होगी, और आपका इससे समय भी बचेगा।

निष्कर्ष

तो ये थी माता वैष्णो देवी मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी. माता वैष्णो देवी के भक्त पूरी दुनिया में है. हर साल लाखो भक्त माता वैष्णो देवी के दर्शन करने के लिए आते है. कुछ श्रद्धालुओं के मन में माता वैष्णो से जुड़ी बहुत सी जिज्ञासा है. हम उम्मीद करते है My Chalisa का हमारा ये लेख आपकी सभी जिज्ञासा को पूरी करेगा. धन्यवाद!!!

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