काशी विश्‍वनाथ मंदिर बनारस का इतिहास

काशी विश्वनाथ मंदिर भारत के प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान में से एक माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार यह 12 ज्योतिर्लिंगों में से सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग के रूप में विराजमान है ।काशी को भगवान भोलेनाथ और काल भैरव की नगरी भी कहा जाता है या यूं कहे कि यह भगवान शिव की एक अद्भुत नगरी है जिसमें भगवान खुद विराजमान होते हैं काशी को सप्तपूरियों के अंतर्गत भी शामिल किया गया है काशी नगरी को बनारस और वाराणसी के नाम से भी जाना जाता है काशी के अंदर दो नदियों का संगम क्रमशः वरुण और 80 के बीच बसे होने की वजह से इसको वाराणसी भी कहा जाता है आईए जानते हैं काशी विश्वनाथ मंदिर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण जानकारी।

शिव के त्रिशूल पर विराजमान है काशी

मान्यताओं की अगर बात की जाए तो काशी नगरी गंगा किनारे बसी होने की वजह से भगवान शिव की त्रिशूल की नोक पर पूरी काशी नगरी बसी हुई है 12 ज्योतिर्लिंग में से एक सबसे प्रमुख ज्योतिर्लिंग काशी विश्वनाथ यहां काशी बनारस में विराजमान है पतित पाहिनी भागीरथी गंगा तट पर धनुष कारी काशी नगरी पाप नाशिनी नगरी के रूप में विख्यात है भगवान शिव को काशी बहुत ज्यादा प्रिय है इसी वजह से इसका नाम काशीनाथ ही रखा गया है।

भगवान श्री हरि विष्णु की नगरी

शास्त्रों के अनुसार काशी को भगवान श्री हरि विष्णु की पूरी भी माना गया है या यू कहे कि पहले यह भगवान शिव की नहीं विष्णु भगवान की पूरी कहलाती थी। यहां पर भगवान श्री हरि विष्णु के आनंद अश्रु गिरे थे। जिससे एक सरोवर प्रकट हो गया। वहां पर भगवान श्री हरि विष्णु बिंदु माधव के नाम से विराजमान हो गए। महादेव को भी भगवान विष्णु की वजह से यह काशी नगरी बहुत प्रिय थी। इसकी वजह से भगवान विष्णु से शिव ने अपने आवास स्वरूप काशी नगरी को वरदान में मांग लिया। तब से लेकर काशी नगरी में भगवान शिव का स्थान बन गया। काशी नगरी हिंदुओं का सबसे बड़ा पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है। 

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विनाश कर दिया यहां के सभी मंदिरों का

चीनी यात्री ह्वेनसांग में बताया गया है कि उनके समय में काशी विश्वनाथ में लगभग 100 मंदिर थे लेकिन सभी मुस्लिम शासको ने यहां के सभी मंदिरों को जड़ से खत्म करके उनकी जगह मस्जिदों का निर्माण कार्य प्रारंभ कर दिया। 11वीं सदी में राजा हरिश्चंद्र ने वापस से काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण करवाया। उसके बाद में सम्राट विक्रमादित्य ने भी इसका जीर्णोद्धार करवाया था। वापस से मोहम्मद गौरी ने सन 1194 में इस मंदिर को लूटने के बाद में खत्म कर दिया।

1585 ईस्वी में राजा टोडरमल ने यहां एक भव्य मंदिर का निर्माण किया। उसके बाद इस भव्य मंदिर को सन 1632 ईस्वी में शाहजहां के आदेश पर तोड़ने के आदेश दे दिए गए लेकिन हिंदुओं के विरोध की वजह से इस मंदिर को शाहजहां की सेवा हाथ तक नहीं लगा सकी। काशी के अंदर अन्य लगभग 63 मंदिर मुस्लिम आक्रमण कार्यों के द्वारा तोड़ दिए गए थे। डॉक्टर एसएस भट्ट के द्वारा उनकी किताब में भी इन सभी का वर्णन किया गया है। 18 अप्रैल 1659 को औरंगजेब ने भी एक आदेश जारी किया। जिसमें काशी विश्वनाथ मंदिर को तोड़ने के आदेश दिए गए। औरंगजेब के द्वारा लिखित फरमान को आज भी कोलकाता लाइब्रेरी में सुरक्षित रखा गया है। उस समय उनके ने लिखित पुस्तक मसीदे आलमगीर में इसका वर्णन किया हैं। मंदिर को तोड़कर औरंगजेब के समय में ही ज्ञानवापी मस्जिद का निर्माण किया गया था।

काल भैरव है काशी के कप्तान

काशी के कप्तान काल भैरव माने जाते हैं। भगवान शिव और पार्वती के वचन अनुसार इनका वहां का कप्तान बनाया गया है। हिंदू देवताओं में भी भैरव बाबा का बहुत महत्व है। इसी वजह से काशी में इनको कोतवाल कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि काशी विश्वनाथ के दर्शन करने के बाद अगर काल भैरव के दर्शन नहीं किए तो भगवान भोलेनाथ के दर्शन का महत्व नहीं होता है। इसीलिए लोग काल भैरव के दर्शन करने के लिए भी जाते हैं। भगवान शिव के रुधिर से काल भैरव की उत्पत्ति हुई थी। भगवान के रुधिर के दो भाग हो गए थे जिनमें से पहले बटुक भैरव और दूसरा काल भैरव के रूप में बन गया। दोनों की हमारे धर्म शास्त्रों में पूजा का विशेष उल्लेख बताया गया है और उनकी पूजा का बहुत प्रबल महत्व भी माना जाता है।

मोक्ष की नगरी है काशी

काशी बनारस को मोक्ष नगरी कहा जाता है कहते हैं काशी में जिस व्यक्ति की अगर मृत्यु हो जाती है तो उस व्यक्ति को खुद महादेव मुक्तिदायक तारक मंत्र देने के लिए आते हैं आज भी यहां पर बहुत से लोग जो अपने अंतिम समय में चल रहे हैं वह अपना अंतिम सांस या प्राण त्यागने के लिए काशी में ही आते हैं काशी में इसके लिए उचित व्यवस्था भी की गई है शास्त्रों के अनुसार मनुष्य की मृत्यु होती है तो उसकी अस्थियां गंगा में विसर्जित की जाती है जो काशी में मुख्य रूप से की जाती है काशी को मोक्ष दाहिनी नगरी भी माना जाता है।

बनारसी पान और बनारसी साड़ी के लिए प्रसिद्ध है काशी

काशी विश्वनाथ को बनारस कहा जाता है आप सभी जानते हैं कि काशी यानी बनारस में बनारस का पान और बनारसी सिल्क की साड़ी बहुत ही ज्यादा प्रसिद्ध है। इनको विश्व प्रसिद्ध भी कहा जाता है। काशी हिंदू विश्वविद्यालय का नाम तो आपने सुने होगा जो कि भारत में ही नहीं बल्कि विदेश में भी बहुत ज्यादा प्रसिद्ध है। यहां के लोग बड़े दिलचस्प किस्म के हैं। जिनको बनारसी बाबू कहा जाता है। इनका व्यवहार बहुत ही सरल और मीठा ज्ञानवर्धक होता है। यहां के लोग दिमाग से बहुत तेज होते हैं। आप सभी ने देखा ही होगा कि बड़े से बड़े नेता अभिनेता गायक संगीतकार, गीतकार नृत्य कार और कलाकार आपके यहां नगरी में देखने को मिल जाएंगे

उत्तरकाशी भी है काशी 

उत्तरकाशी के नाम को जाना जाता है उत्तरकाशी को छोटा काशी भी कहते हैं। उत्तरकाशी ऋषिकेश जिले में मुख्य केंद्र है। इसका एक भाग गढ़वाल राज्य का हिस्सा भी है। उत्तरकाशी सबसे महत्वपूर्ण तीर्थ स्थान वाला शहर है। उत्तरकाशी की भूमि साधु संतों और आध्यात्मिक अनुभूति तपस्या स्थली मानी जाती है। दुनिया भर से लोग यहां इस भूमि पर वैदिक भाषा को सीखने के लिए आते हैं। महाभारत में एक महान साधु ने इस भूमि पर घोर तपस्या की थी। स्कंद पुराण के केदार खंड में भी आप उत्तरकाशी का वर्णन कर सकते हैं। जिसमें भागीरथी, जाह्नवी, भील गंगा इन सभी के बारे में भी बताया गया है

अहिल्याबाई होलकर के सपने में आए थे शिव

आप सभी जानते ही है कि रानी अहिल्याबाई होल्कर बहुत बड़ी शिव भक्त की और इस मंदिर के निर्माण में उनका बहुत बड़ा योगदान है ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव रानी अहिल्याबाई के सपने में आए थे और फिर रानी अहिल्याबाई ने इस मंदिर का वापस से निर्माण करवा कर काशी की महिमा को बढ़ाने का काम किया। इंदौर के महाराज रणजीत सिंह ने भी सोने के खाबो का निर्माण करवा कर बहुत बड़ा योगदान करवाया था। 

निष्कर्ष

तो दोस्तों, ये थी काशी विश्वनाथ मंदिर से जुड़ी पूरी जानकारी।  अगर आप भी काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करना चाहते है तो आप भी वहाँ पर जरुर जाएँ।  हर व्यक्ति अपने जीवन में एकबार काशी विश्वनाथ मंदिर जरुर जाना चाहता है।  आशा करते है आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई होगी।  और रोचक जानकारी लेने के लिए हमारी वेबसाइट के साथ जुड़े रहे। MyChalisa.com से जुड़ें इस तरह की और जानकारी के लिए।

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