सूर्य मंदिर का नाम सुनते ही दिमाग में एक नाम आता है उड़ीसा का कोणार्क मंदिर, लेकिन आपको बता दे कि उड़ीसा के अलावा भी ग्वालियर में अति प्राचीन सूर्य मंदिर है। इसका निर्माण वसंत कुमार बिरला के द्वारा 20वीं सदी में करवाया गया था। यह 20वीं सदी का एकमात्र सूर्य मंदिर है, जो कि ग्वालियर मध्य प्रदेश में आता है।
बिरला परिवार की स्थापना की वजह से अन्य बिरला मंदिरों के कारण ग्वालियर के इस मंदिर का नाम बिरला मंदिर और बिरला सूर्य मंदिर भी रखा गया है। अर्थात इन नाम से भी आप इसको जान सकते हैं। अन्य सभी बिरला मंदिर पूरे देश में आप देख सकते हैं जो कि अपनी अद्भुत शैली अत्यधिक हरियाली बड़े-बड़े बगीचों की वजह से जाने जाते हैं ।आईए जानते हैं ग्वालियर सूर्य मंदिर के बारे में उसका इतिहास उससे जुड़ी हुई सभी महत्वपूर्ण जानकारियां.
ग्वालियर सूर्य मंदिर का स्वरूप
ग्वालियर में स्थित सूर्य मंदिर के स्वरूप की अगर बात की जाए तो यह मंदिर भगवान सूर्य के रथ के आकार का बना हुआ है। यहां पर एक बड़े से चबूतरे के ऊपर 24 चक्र और सात घोड़े का रथ विराजमान है, जो कि गर्भ ग्रह और मुख्य हाल पर बनाया गया है। रथ के अंदर साल के 24 पखवाड़े, दिन रात के 8-8 सप्ताह के सभी दिन इसके प्रतीक माने जाते हैं। इस प्रकार की आकृति में इस सूर्य मंदिर का निर्माण किया गया है।
सूर्य मंदिर के निर्माण का इतिहास
ग्वालियर सूर्य मंदिर का निर्माण बसंत कुमार जी बिरला ने 20वीं सदी में करवाया था। इस मंदिर के शिलान्यास का प्रोग्राम सन 1984 में तथा प्राण प्रतिष्ठा 23 जनवरी को हुई थी ।इस मंदिर की चौड़ाई की बात की जाए तो यह 20500 वर्ग मीटर में फैला हुआ है। मंदिर की ऊंचाई क्षेत्र फिट 1 इंच की रखी गई है। पूर्ण रूप से यह मंदिर कोणार्क के सूर्य मंदिर के तरह ही बनाया गया है। जो कि वास्तुकला का एक अद्भुत उदाहरण लगता है। यह मंदिर आधुनिक युग का एकमात्र ऐसा अद्भुत सूर्य मंदिर है जो वस्तु सिर्फ का भी गौरव माना जाता है।
ग्वालियर का सूर्य मंदिर अगर आप देखने जाते हैं तो उसको देखते ही उड़ीसा के कोणार्क मंदिर की छवि दिमाग में याद आती है। उड़ीसा का कोणार्क मंदिर जिस तरह से उल्टे कमल की शैली पर बनाया गया है। उसी प्रकार से इस मंदिर को भी रथ की आकृति पर सूर्य के समान बनाया गया है। कोणार्क मंदिर की तरह ही सूर्य मंदिर में भी भगवान सूर्य के सप्ताह दिन के प्रतीक साथ घोड़े पर सवार किए गए हैं। इस रथ पर साल के 12 महीना के साथ-साथ कृष्ण पक्ष शुक्ल पक्ष के प्रतीक शैया की दोनों साइड बनाए गए हैं।
हर पहिए में आठ बड़े आठ छोटे और लगाए गए हैं जो रात और दिन के आठ पैर का प्रतीक माना जाता है। गर्भ ग्रह में भगवान सूर्य की मूर्ति विराजमान है। इस मंदिर में खिड़कियां इस तरीके से बनाई गई है कि सूर्य की पहली किरण संध्या काल की आखिरी किरण भगवान सूर्य की प्रतिमा को रोशन करती रहे इस तरह से इस मंदिर को बनाया गया है।
सुबह से शाम होती है आरती
प्राचीन समय से चली आ रही परंपरा को पालन करते हुए यहां पर सूर्य भगवान की नित्य प्रतिदिन सूर्य उपासना होती आ रही है। जिसमें से भगवान की आरती भी मंदिर में सूर्योदय और सूर्यास्त पर होती है। मंदिर की आरती की अगर बात की जाए तो ढोल नगाड़ों की ताल पर पुजारी और श्रद्धालु आदित्य हृदय स्त्रोत का पाठ करते हुए भगवान सूर्य नारायण की आरती गाते हैं। मंदिर के वास्तु की वजह से ही यहां नगाड़ा और गायन के साथ में आध्यात्मिक वातावरण महसूस होता है।
सूर्य मंदिर का गर्भ ग्रह
सूर्य मंदिर के गर्भ ग्रह में सात घोड़े के रथ के समान यहां एक संगमरमर का बड़ा चबूतरा बनाया गया है चबूतरो के सामने सात घोड़े बनाए गए हैं जिनका राशि सारथी के हाथ में है चबूतरे पर ऊंचे आसन पर भगवान सूर्य की मूर्ति विराजमान है।
पद्मासन में भगवान सूर्य कुंडल एकवाली, हर कोंकण, नूपुर, मेखला, धोती, रघुपति धारण किए हुए हैं। भगवान सूर्य चतुर्भुज देवता के समान दिखाई दे रहे हैं। उनकी दो उठी हुई भुज में कमल पुष्प त्रिशूल और माला भी दिखाई देती है।
भगवान सूर्य की प्रतिमा पौराणिक हिंदू धर्म की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा विष्णु महेश के समान दिखाई देती है। कमल पुष्प के समान सूर्य और विष्णु , त्रिशूल शिव के, माला ब्रह्मा के प्रतीक माने गए हैं।
गर्भ ग्रह के अंदर सूर्य की रोशनी निरंतर सूर्यास्त और सूर्योदय के समय पड़े इसके लिए शिखर के चारों तरफ सुरंग बनाई गई है जिससे कि सूर्य की रोशनी भगवान की मूर्ति पर पड़ती रहे उस मूर्ति की चमक ज्यादा दिखाई देती है।
मंदिर में वास्तु कला का इस तरीके से कारीगरी की गई है दिन के बीच में सूर्य की किरण गर्भ ग्रह में स्थित भगवान सूर्य की मूर्ति पर सीधी पड़ती है जो उसके स्वर्ण मुकुट को पूरी तरह से चमकती है सदैव प्रकाशित करती रहती हैं।
सूर्य मंदिर का मंडप व अन्य मूर्ति
सूर्य मंदिर ग्वालियर में मंदिर की पूर्व दिशा में दाई और बाई तरफ दो बड़ी आकार की छतरियां विराजमान है जिनमें घनश्याम दास जी बिरला और उनकी पत्नी महादेवी बिरला की काशी की मूर्तियां भगवान को प्रणाम करते हुए बनाई गई है जिससे मंदिर की शोभा और बढ़ रही है मंदिर में एक बड़ा हाल और तीन द्वारा बनाए गए हैं हरिद्वार पर चार-चार स्तंभ लगाए गए हैं उन सभी स्तंभों पर नवग्रह की मूर्तियां स्थापित की गई है। हर द्वार पर आपको चतुर्भुज जी गणेश जी की मूर्ति भी विराजमान दिखाई देगी।
मंदिर में देखा जाए तो कल 373 मूर्तियां विराजमान है। मंदिर की दीवारों पर भी खास तरह की चित्रकारी की गई है। जिनमें द्वादश सूर्य के अवतार दशावतार ब्रह्मा विष्णु नारद नवदुर्गा चारों दिशाओं में नृत्य मुद्रा में बाद बजाती हुई मुद्रा में नारी की मूर्ति भी बनाई गई है। हम उम्मीद करते है My Chalisa का हमारा ये लेख आपकी सभी जिज्ञासा को पूरी करेगा. धन्यवाद!!!