Tulsi Chalisa (तुलसी चालीसा)
क्या आपके घर में तुलसी का पौधा है? लगभग सभी के घर में तुलसी का एक पौधा जरूर होता है, और उसकी पूजा घर में जरूर की जाती है। खासकर महिलाएं रोज सुबह तुलसी में जल चढ़ाकर जरूर तुलसी माता से प्रार्थना करती है। तो क्या आपने कभी तुलसी माता की पूजा करते करते तुलसी चालीसा का पाठ किया है? अगर नहीं, तो आज आपको तुलसी चालीसा Tulsi Chalisa के बारे में बताते हैं।
तुलसी चालीसा
॥ दोहा ॥
जय जय तुलसी भगवती सत्यवती सुखदानी।
नमो नमो हरी प्रेयसी श्री वृंदा गुन खानी।।
श्री हरी शीश बिरजिनी , देहु अमर वर अम्ब।
जनहित हे वृन्दावनी अब न करहु विलम्ब ।।
॥ चौपाई ॥
धन्य धन्य श्री तलसी माता । महिमा अगम सदा श्रुति गाता ।।
हरी के प्राणहु से तुम प्यारी । हरीहीं हेतु कीन्हो ताप भारी।।
जब प्रसन्न है दर्शन दीन्ह्यो । तब कर जोरी विनय उस कीन्ह्यो ।।
हे भगवंत कंत मम होहू । दीन जानी जनि छाडाहू छोहु ।।
सुनी लख्मी तुलसी की बानी । दीन्हो श्राप कध पर आनी ।।
उस अयोग्य वर मांगन हारी । होहू विटप तुम जड़ तनु धारी ।।
सुनी तुलसी हीं श्रप्यो तेहिं ठामा । करहु वास तुहू नीचन धामा ।।
दियो वचन हरी तब तत्काला । सुनहु सुमुखी जनि होहू बिहाला।।
समय पाई व्हौ रौ पाती तोरा । पुजिहौ आस वचन सत मोरा ।।
तब गोकुल मह गोप सुदामा । तासु भई तुलसी तू बामा ।।
कृष्ण रास लीला के माही । राधे शक्यो प्रेम लखी नाही ।।
दियो श्राप तुलसिह तत्काला । नर लोकही तुम जन्महु बाला ।।
यो गोप वह दानव राजा । शंख चुड नामक शिर ताजा ।।
तुलसी भई तासु की नारी । परम सती गुण रूप अगारी ।।
अस द्वै कल्प बीत जब गयऊ । कल्प तृतीय जन्म तब भयऊ।।
वृंदा नाम भयो तुलसी को । असुर जलंधर नाम पति को ।।
करि अति द्वन्द अतुल बलधामा । लीन्हा शंकर से संग्राम ।।
जब निज सैन्य सहित शिव हारे । मरही न तब हर हरिही पुकारे ।।
पतिव्रता वृंदा थी नारी । कोऊ न सके पतिहि संहारी ।।
तब जलंधर ही भेष बनाई । वृंदा ढिग हरी पहुच्यो जाई ।।
शिव हित लही करि कपट प्रसंगा । कियो सतीत्व धर्म तोही भंगा ।।
भयो जलंधर कर संहारा। सुनी उर शोक उपारा ।।
तिही क्षण दियो कपट हरी टारी । लखी वृंदा दुःख गिरा उचारी ।।
जलंधर जस हत्यो अभीता । सोई रावन तस हरिही सीता ।।
अस प्रस्तर सम ह्रदय तुम्हारा । धर्म खंडी मम पतिहि संहारा ।।
यही कारण लही श्राप हमारा । होवे तनु पाषाण तुम्हारा।।
सुनी हरी तुरतहि वचन उचारे । दियो श्राप बिना विचारे ।।
लख्यो न निज करतूती पति को । छलन चह्यो जब पारवती को ।।
जड़मति तुहु अस हो जड़रूपा । जग मह तुलसी विटप अनूपा ।।
धग्व रूप हम शालिगरामा । नदी गण्डकी बीच ललामा ।।
जो तुलसी दल हमही चढ़ इहैं । सब सुख भोगी परम पद पईहै ।।
बिनु तुलसी हरी जलत शरीरा । अतिशय उठत शीश उर पीरा ।।
जो तुलसी दल हरी शिर धारत । सो सहस्त्र घट अमृत डारत ।।
तुलसी हरी मन रंजनी हारी। रोग दोष दुःख भंजनी हारी ।।
प्रेम सहित हरी भजन निरंतर । तुलसी राधा में नाही अंतर ।।
व्यंजन हो छप्पनहु प्रकारा । बिनु तुलसी दल न हरीहि प्यारा ।।
सकल तीर्थ तुलसी तरु छाही । लहत मुक्ति जन संशय नाही ।।
कवि सुन्दर इक हरी गुण गावत । तुलसिहि निकट सहसगुण पावत ।।
बसत निकट दुर्बासा धामा । जो प्रयास ते पूर्व ललामा ।।
पाठ करहि जो नित नर नारी । होही सुख भाषहि त्रिपुरारी ।।
॥ दोहा ॥
तुलसी चालीसा पढ़ही तुलसी तरु ग्रह धारी ।
दीपदान करि पुत्र फल पावही बंध्यहु नारी ।।
सकल दुःख दरिद्र हरी हार ह्वै परम प्रसन्न ।
आशिय धन जन लड़हि ग्रह बसही पूर्णा अत्र ।।
लाही अभिमत फल जगत मह लाही पूर्ण सब काम।
जेई दल अर्पही तुलसी तंह सहस बसही हरीराम ।।
तुलसी महिमा नाम लख तुलसी सूत सुखराम।
मानस चालीस रच्यो जग महं तुलसीदास ।।
Tulsi Chalisa in English
॥ Doha ॥
jai jai Tulsi Bhagvati Satyavati sukhdani |
namo namo Hari Priyasi Shree Vrunda gunkhani ||
Shree Hari shish birajini, dehu amar var amb |
janhit Hey Vrundavani ab n karahu vilamb ||
॥ Chaupaii ॥
dhanya dhanya shri Tulsi mata , mahima agam sada shruti gata
Hari ke pranahu se tum pyari, Harihi hetu kinho tap bhaari
jab prasann hai darshan deenhyo, tab kar jori vinay us kinhyo
Hey Bhagvant Kant mum hohu , deen jaani jani chadahu chohu
suni Lakshmi Tulsi ki bani, deenho shrap kadh per aani.
us ayogya var maangan haari , hohu vitap tum jad tanu dhari
suni Tulsihi shrapyo tehi thama , karhu vaas tuhu neechan dhama
diyo vachan Hari tab tatkala , sunahu sumukhi jaihohu bihala
samay paai vhau pati tora , pujaihau aas vachan sat mor
tab Gokul mah gop Sudama , tasu bhai Tulsi tu bama
Krushn raas leela ke mahi , Radhe shakyo prem lakhi nahi
diyo shrap Tulsih tatkala , nar lokhi tum janmahu bala
yo Gop vah danav raja , Shankhchud namak shir taja
Tulsi bhai tasu ki nari , param sati gun roop agari
as dvai kalp bit jab gayau , kalp trutiy janam tab bhayau
Vrunda naam bhayo Tulsi ko , asur Jalandhar naam pati ko
kari ati dvand atul baldhama , linha Shankar se sangrama
ab nij sainy sahit Shiv hare , marahi n tab Har Harihi pukar
pativrata Vrunda thi nari, kou n sake patihi sanghari
tab Jalandharhi bhesh banayi , Vrunda dhig Hari pahuchyo jaai
Shiv hitlahi kari kapat prasanga , kiyo satitva dharm tehi bhanga
bhayo Jalandhar kar sanghara , suni ur shok upara
tihi kshan diyo kapat Hari tari , lakhi Vrunda dukh gira uchari
Jalandhar jas hatyo abhita , soi Ravan tas Harihi Sita
as prastar sam hruday tumhara , dharm khandi mum patihi sanghara
yahi karan lahi shrap humara , hove tanu pashan tumhara
suni Hari turatahi vachan uchare, diyo shrap tum bina vichare
lakhyo n nij kartuti pati ko , chalan chahyo Parvati ko
jadmati tuhu as ho jadroopa , jagmah Tulsi vitap anupa
dhgv roop hum Shaligrama , nadi Gandaki bich lalaama
jo Tulsidal humhi chadhaihau, sab sukh bhogi parampad paihau
binu Tulsi Hari jalat sharira , atishay uthat shish ur peera
jo Tulsidal Hari shish dharat , so sahastra ghat Amrut darat
Tulsi Hari mun ranjani haari , rog dosh dukh bhanjani haari
prem sahit Hari bhajan nirantar, Tulsi Radha me nahi antar
vyanjan ho chappanhu prakara , binu Tulsidal n Harihi pyara
sakal tirth Tulsi taru chahi, lahat mukti jan sanshay nahi
kavi sunder ik Hari gun gavat , Tulsihi nikat sahasgun pavat
basat nikat te purv lalama ,jo prayas te purv lalaama
paath karahi jo nit nar nari , hohi sukhi bhashahi Tripurari
॥ Doha ॥
Tulsi chalisa padhahi Tulsi taru grah dhari
deepdaan kari putrfal pavahi bandhy hu nari
sakal dukh daridra Hari Har hvai param prasann
ashiy dhan jan ladahi grah badahi purna atr
lahi abhimat fal jagat mah laahi purn sabkaam
jaidal arpahi Tulsi tah sahas basahi HariRam
Tulsi mahima naam lakh Tulsi sut sukhraam
manas chalis rachyo jag mah Tulsidaas.
तुलसी जी कौन हैं?
हमने आपको बताया कि सभी घर में तुलसी का पौधा जरूर होता है। तो आपको क्या मालूम है कि उस तुलसी के पौधे का रहस्य क्या है? तो चलिए हम आपको बताते हैं। असल में तुलसी का पौधा जो है वह पिछले जन्म में एक लड़की थी, जिसका नाम वृंदा था, और वह बचपन से ही भगवान विष्णु की बहुत बड़ी भक्ति थी, और वह बड़ी श्रद्धा पूर्वक विष्णु जी की भक्ति करती थी। उनका विवाह जलंधर नामक समुद्र से उत्पन्न हुए दानव से हुआ था। असल में हुआ यह था कि जब देवताओं और दानवो के बीच में युद्ध हुआ था, तब जलंधर भी उस युद्ध में गया था। लेकिन उस समय वृंदा अपने संकल्प पर भगवान से यह प्रार्थना कर रही थी कि जलंधर को कुछ ना हो,और हुआ भी ऐसा उसकी प्रार्थना के वजह से जलंधर को कोई भी देवता मार ना पाया। लेकिन इसी को देखते हुए विष्णु जी ने जलंधर का वेश धारण किया, और वृंदा के पास गए जिसे देखकर वृंदा अपने पूजा से उठ गई, जिससे कि उसका संकल्प टूट गया, और उधर जलंधर मारा गया। इसके बाद वृंदा बहुत ही ज्यादा नाराज हुई, और विष्णु जी को श्राप दे दिया, और जलंधर के सर को लेकर वृंदा सती हो गई, और उनके राख से एक पौधा निकला जिसका नाम विष्णु जी ने तुलसी रखा। इसीलिए आज वृंदा को ही तुलसी के नाम से जाना जाता है, और तुलसी जी को विष्णु जी की प्रिया भी कहा जाता है।
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तुलसी जी को प्रसन्न कैसे करें?
तो चलिए अब हम आपको यह बताते हैं कि अगर आप भी घर में तुलसी माता की पूजा करते हैं, तो आप उन्हें किस प्रकार से प्रसन्न कर सकते हैं। तो हम आपको बता दें कि अगर आप तुलसी माता को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो आप tulsi chalisa का पाठ करके आसानी से उन्हें प्रसन्न कर सकते हैं। क्योंकि tulsi chalisa में उनके गुणों का बखान होता है, इसलिए उसके उच्चारण से तुलसी माता बहुत ही ज्यादा प्रसन्न होती है, और हम आपको बता दें कि तुलसी चालीसा का पाठ करने से तुलसी माता प्रसन्न होती ही है लेकिन इसके साथ-साथ विष्णु जी भी बहुत प्रसन्न होते हैं। क्योंकि तुलसी जी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है तो आपको तुलसी चालीसा का पाठ करने से तुलसी माता एवं विष्णु जी दोनों की कृपा प्राप्त होती।
आज आपने तुलसी जी एवं तुलसी चालीसा के बारे में जाना तो अगर आप भी घर में ही तुलसी माता को प्रसन्न करना चाहते हैं, तो तुलसी के पौधे में जल चढ़ाने के साथ-साथ तुलसी चालीसा का पाठ करके तुलसी माता को प्रसन्न कर सकते हैं।