गीता के इन 5 श्लोकों का रोज करें पाठ, जीवन में आएगा बदलाव

श्रीमद् भागवत गीता के बारे में आज हर व्यक्ति बहुत अच्छे से जानता है। गीता हमारे प्रमुख धर्म ग्रंथो में से मुख्य माना गया है। भगवान श्री कृष्ण के द्वारा दिए गए कुरुक्षेत्र के मैदान में अर्जुन को उपदेश अर्थात कृष्ण अर्जुन के संवाद को गीता के सार में वर्णन किया गया है। यहां भगवान श्री कृष्ण ने अपना चतुर्भुज रूप अर्जुन को दिखाया है। उसके बाद समस्त संसार के हित के हेतु गीता का उपदेश ज्ञान अर्जुन को दिया है। 

श्रीमद् भागवत गीता वह प्रमुख ग्रंथ है जिसके केवल मात्र स्मरण से या इसमें वर्णित सभी श्लोक को अपने जीवन में उतरने से मनुष्य का जीवन बहुत आसान हो जाता है। समस्त सांसारिक मोह माया के बंधन से मनुष्य मुक्त हो जाता है। यहां पर घर गृहस्ती से लेकर हर कार्य क्षेत्र के लिए बताया गया है। 

गीता का उपदेश

भगवान श्री कृष्ण ने समस्त संसार के हित के लिए सभी प्राणियों की रक्षा हेतु विषम परिस्थितियों से निकलने के लिए ही गीता का उपदेश दिया है। मनुष्य के जीवन में कितनी भी विशेष परिस्थितियों अगर आती है तो उसके लिए भगवत गीता एकमात्र ऐसा ग्रंथ है। जिसको केवल मात्र पढ़ने से उसका स्मरण करने से व्यक्ति की हर परिस्थिति मिट जाती है।

श्री कृष्ण ने भगवत गीता में बताया है कि मनुष्य को कर्म निरंतर करते रहना चाहिए। फल की कभी इच्छा नहीं रखनी चाहिए। आज हम आपको भागवत गीता में वर्णित उन पांच प्रमुख श्लोक के बारे में जानकारी देने वाले हैं जो न केवल आपके जीवन के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि मनुष्य के जीवन में बदलाव लाने के लिए यह पांच श्लोक बहुत ही महत्वपूर्ण है। आईए जानते हैं गीता के उन पांच श्लोक के बारे में पूरी जानकारी।

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श्रीमद् भागवत गीता के पांच प्रमुख श्लोक

श्रीमद् भागवत गीता में वैसे तो बहुत सारी मनुष्य जीवन से जुड़ी हुई संसार के हित के लिए यहां तक की कूटनीति राजनीति हर परिस्थिति की बातों का वर्णन किया गया है। किसी भी विषम परिस्थिति से निपटने के लिए किस तरह से इंसान को संयम प्रार्थना चाहिए उन सभी का वर्णन इस प्रमुख ग्रंथ भगवद् गीता में बताया गया है। आईए जानते हैं श्रीमद् भागवत गीता के प्रमुख श्लोक के बारे में जानकारी

  1.  नैनम छिद्रति शस्त्राणि नैनं देहति पावक:।

              न चैन क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारूत।।

हिंदी अनुवाद

  आत्मा एक ऐसा हथियार है जिसको ना अस्त्र से काटा जा सकता है ना शास्त्र से काटा जा सकता है ना ही इसको आग से जलाया जा सकता है ना आत्मा को पानी से भिगोया जा सकता ना आत्मा को हवा में उड़ाया जा सकता आत्मा एकमात्र ऐसा केंद्र बिंदु होता है जिसका सर्वनाश कभी नहीं होता है आत्मा अजर और अमर होती है। ऐसा कहा जाता है की आत्मा सो परमात्मा अर्थात आत्मा को ही परमात्मा माना गया है।

  1.    कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।

मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

हिंदी अनुवाद

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि कम करना केवल मात्र मनुष्य का एकमात्र अधिकार होता है उसमें फल को शामिल नहीं किया गया है कर्म फल के अधिकार के लिए तुम वंचित न रहो और ना ही तुम्हारी आकार में आ सकती हो भगवान कहते हैं कि मनुष्य को कभी भी कम करते हुए फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए अगर मनुष्य पहले से ही फल की इच्छा को रखता है तो वह मनुष्य जीवन में कभी भी सफल नहीं होता है इसीलिए हर कार्य को करने से पहले उसके फायदेके बारे में सोचना गलत होता है अगर आप मेहनत करते हो तो आपको सफलता अवश्य मिलेगी। 

  1.   ध्यायतो विषयान्पुंसः सङ्गस्तेषूपजायते।

सङ्गात्संजायते कामः कामात्क्रोधोऽभिजायते॥

हिंदी अनुवाद

 मनुष्य को किसी भी विषय के बारे में  सोचते रहने से अर्थात मनुष्य का स्वभाव है कि वह हमेशा चीजों के बारे में सोचता रहता है किसी भी विषय वस्तु के बारे में ज्यादा सोचने से उसकी पूरी तरह से आ सकती मनुष्य को हो जाती है अगर मनुष्य को उसकी आसक्ति हो गई है तो वहां उसकी कामना अर्थात इच्छा भी जागृत हो जाती है कुल मिलाकर अगर कामनाओं की जागृति हो जाती है तो मनुष्य के अंदर क्रोध की उत्पत्ति हो जाती है कामनाओं में किसी भी तरह की अगर रुकावट आती है तो मनुष्य का स्वाभाविक रूप से गुस्सा आना जायज होता है इसीलिए कभी भी किसी चीज के बारे में ज्यादा ना सोचा ही सही होता है ज्यादा सोचना गुस्से को  बढ़ावा देना है।

  1.   क्रोधाद्भवति संमोह: संमोहात्स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद्बुद्धिनाशो बुद्धिनाशात्प्रणश्यति॥

हिंदी अनुवाद

ज्यादा क्रोध करने से मनुष्य की माटी बेकार हो जाती है अर्थात वह व्यक्ति की बुद्धि बिल्कुल भ्रष्ट हो जाती है मनुष्य की स्मृति अर्थात उसकी यादें भी बिल्कुल भ्रमित हो जाती है जब मनुष्य की सोचने समझने की शक्ति चिन्ह हो जाती है तो पूरी तरह से उसकी बुद्धि नष्ट हो जाती है बुद्धि का जब मनुष्य का नाश हो जाता है तो मनुष्य का खुद के ऊपर कंट्रोल नहीं होता है और वह खुद का नाश कर देता है। कुल मिलाकर देखा जाए तो इंसान को उसका क्रोध गलत रास्ते पर ले जा सकता है उसकी बुद्धि का पूरी तरह से विनाश कर देता है श्रीमद् भागवत गीता में इस श्लोक के अंतर्गत यह ही समझने की कोशिश की गई है कि मनुष्य को क्रोध काम करना चाहिए नहीं तो उसकी बुद्धि भ्रमित होने के साथ-साथ भ्रष्ट हो जाती है।  

5. यदा यदा ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत:

अभ्युत थाना अधर्मस्या तादात्मनम सृजाम्यहम्

हिंदी अनुवाद

भगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि है अर्जुन जब-जब इस धरती पर धर्म की हानि होती है धर्म का नाश होता है तब तक इस धर्म को जागृत करने और धर्म का नाश करने के लिए भगवान को जन्म लेना पड़ता है भगवान श्री कृष्णा  अर्जुन को कहते हैं कि धर्म जब धरती पर अधिक बढ़ जाता है उसे समय भगवानको अपना अवतारधर्म स्थापना के लिए लेना पड़ता है अर्थात से पथ में धर्म की रक्षा के लिए स्वंय लेकर पृथ्वी पर आता हूं।

निष्कर्ष:

तो दोस्तों, अगर आप ऊपर बताएं गए मंत्रो का नियमित रूप से रोजाना उच्चारण करेंगे तो आप खुद ही अपने जीवन में एक बड़ा बदलाव महसूस करेंगे। तो हम भी आपको यही सलाह देंगे कि अपने जीवन में इन मंत्रो को अपनाकर बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल करे. धन्यवाद!!! और जानने के लिए MyChalisa.com को विजिट करे।

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